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प्रपं-हे मंरूप मकान के लिये परकोटेका रूप धारण करनेवाले पाप मुझे यह बतलाइये कि जो इस जन्म में प्राप का तो छोटा भाई प्रोर मेरा पगाज होता है जो कि प्राज राजा होकर भोग विलास में लगा हुवा है, हे प्रभो कभी वह भी धर्म धारण करेगा या नहीं। इनीग्निः प्राह मुनिमहागयः चपूर्व जन्मश्रवणाद् वृषाश्रयः । म मम्भविष्यन्ययिमानरूतर-प्रणीनये पुण्यनिधीखरोवाः ।२२
प्रथं-रामवत्ता के प्रश्न को सुनकर उदार और गंभीर हत्य के धारक मुनि महाराज बोले कि हे माता उत्तम पुण्य का भण्डार वह जा अपने पूर्व जन्म को बात मुनेगा तो फिर अपने उत्तर जन्म को सुधारने के लिये धर्म का महारा पकड़ेगा। ददामि नेऽमुप्य कियवालि-वनोऽस्ति यः सज्जनपालको वली यदस्तुतच्चिचमगंजमकलि-विकाशनायाकमहः किलालि ।२३
प्रपं-सलिये में उम मजजनों के पालक बलवान राजा के कुछ पूर्व भवों का वर्णन तुझे मुनाता हूं सो जाकर बताना उसमे उसके मनरूपकमल को कलिका जरूर खिन जावेगो जमे हि मूर्यके घामसे। मृगायणः कोशलंदशमन्धिन-प्रवृद्धनाम्नाह जनाश्रये द्विजः । यदङ्गनाऽऽपामगाऽनो: मुनाऽथ वामणीनाममुरूपमंन्तुना ।२४
प्रयं-इसो भरत क्षेत्र में कोशल देश के मध्य में पूर नाम का एक गांव है, उसमें मृगापण नामका एक ब्राह्मण रहता था जिस के मधुरा नाम को औरत यो उन दोनों के संयोग से एक वाहणी माम को अच्छे स्पको धारक लड़को पैदा हुई।