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रत्नानि दृष्टान्यपि कि कदाचित्कथविधानीन्यथं ते हताचित् । अन्वेति भद्रोऽपि ममाहनामा-दिकं बमनां निबद्यधामा ।३.
प्र-भला तेरो बुद्धि मारी गई है ? रत्नों का तेरे पास में होना तो हर किनार हो प्रपित गानों को तुमने प्रांखों मे कभी देखे हैं क्या कि कंमे होते है ? ऐमो बात सुनकर भामित्र फिर खूप मोश में होते हुये बोला कि हां मैने देव हो नगे है किन्तु उस उस रग के प्रमुक गहन मेरे पास थे। जगजे चाहं शृण वित्र ग्न दीपादपादाय पुनीनयन्नः । दवा ममाननुमगांकुलादीकतो भवानव मलीकवादी ।३१।
प्रपं- उमने गजकर निर्भीकता के माष कहा कि हे विप्र महाशय ! उन उपर्यन म्नों को मे मेरे माथियों के माय नोप जाकर वहां में लाया या पोर लाकर उन्हें वे प्रापके पाम प्रको तरह से रहेंगे मा मोचकर मापके पाम रायकर मै मेरे मा बाप को लाने के लिये चला गया था, अब भला प्राप हनने यो प्रारमो होकर इस प्रकार क्यों झट बोलते हो? नथापि कः प्रत्यायिनाम्यवानः ग्यानिय नाविप्रवराय मा च । निष्कागिताऽन:प्रविनाटय लोक विक्षिप्त एवेत्युपलब्धगकः।३२
-- फिर भी उम विचारे के कहने का कोन विश्वास करने वाला या ? क्यों कि उम ब्राह्मण को "मो मिति थी कि वह कभी झूठ नहीं बोलता। प्रतः उस एकाकी भमित्र को पागल ठहराकर पहरेदार लोगोंने उसे मार पोट कर बाहर निकाल दिया।