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प्रयं - इस प्रकार फिर यहां पिताने कहा कि हे बेटा तेरे वचन मोठे धौर सुहावने है जैसे कि गंगा मे पाये हुये निर्भरने का क्योंकि ? तो भलो माँ से पंदा टूवा है ।
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कठोर भावान्निव मान्यहन्नुयादिवने जननीह किन्तु | वेविनाऽऽकाशन नियथास्या. नमोधरा स्वहिता व्युदाम्या | ११ |
प्रयं बेटा मैं तो उद्यान के समान कठोर दिल वाला हूं प्रतः सम्भव है कि तेरे बिना रह भी जाऊंगा किन्तु सूर्य के बिना जिम प्रकार प्राकाश को गला प्रत्यकार पूर्ण हो जाती है उसी प्रकार तेरी मां तो तेरे बिना मुंह बाकर पर पुरा देगी |
इतीरितोऽस्येत्य स जन्मदात्री त्याजगादीनमपुण्यपात्र । मातयः यह यामि देशान्तरं शुभता ते मा | १२ |
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प्रयं इस प्रकार कहने पर फिर वह वहा से चला और उत्तम पुण्य की भोगने वाली एवं अपनी जन्म देनेवाली मां के पास प्राकर नमस्कार करके बोला कि हे मानाजी में अपने साथियों के साथ देशान्तर को जा रहा हूं मो श्राप शुभाशीर्वाद वं । कृत्वाऽत्र मामम्बुजमविहीनां मरोवरी मङ्गन ! किन्नु दीनां । किलोचितं यातुमिति त्वमेव विचारयेदं धिषणाभिदेव ! | १३|
प्रयं इस पर माना बोली कि बेटा तूने क्या कहा, भला जरा तू ही तो विचार कर कि मुझे यहां पर कमल रहित तलंय्या के समान दोन बना कर हे वृद्धि के भण्डार ! क्या तेरा जाना उचित है ? ।