SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनयोजन या प्रियङ्ग गनुगा श्री शिरमीव सुन या जगतां हदयोपपिणा जलधाग्व पवित्ररूपिणी ।।१३।। प्रषं इन दोनों राजा राणियों के एक प्रिया गुषो नाम को नसी थी जो कि हम गंमार को ममम्त सुमर पोरतों में शिरोमरिण थी इसनिय जनधाग के ममान पवित्र स्पबालो हो कर सब लोगों के मन को भाने वालो यो। नवयौवनभूपना यदा कुम मश्रीहि वमन्तमम्पदा । भ्रमा: ममाय नमः क इहाम्या इति चेतनाऽभवत् ।१४ प्रयं-- जमेको र बमन को शोभा को धाररम करतो मी प्रकार जर उमएको ने मवयोवन को अपनाया तो उसके पिताको ऐमा विनार हाकिमको मोभाग्य देने वाला इसका भ्रमर प्रर्यान पनि कौन होगा ? पितरिय दवम्बिता दिन मेपा शृण भी मदीर्घदोः म्नवको नग्गन्ध पचिता म्यातनया मनीह ने ।।१५।। प्रयं - दम पर किमो भले ज्योतिगो ने बतलाया कि हे सम्बो भुजावों के धारक मागजा मुनो यह प्रापको लाको मो कि बड़ी मुशील है वह इस जाम में नवगुना नगर के राजा को प्यारो बनेगी। द्विरदेखिव मेदिनीपनियभिमन्यः गनिनितमन्नतिः । बहुदानविधान कारकम्पटमंगवणनामधारकः ।।१६।।
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy