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________________ स्नातकपना पाने की भावना से अपने अन्तरङ्ग को धोने में लग रहा। पुण्यो हि भुवि रम्य विकः परवस्तुभिः । म एव वनमामायाशुन्यतामा मनोऽभ्यगात् ।१८। ___प्रयं-पहिले गृहस्थपन में जो वा पुत्र धन धान्य वगैरह से अपने प्रापको राजी रखता था, एक रङ्गरेज का काम करता था वही प्रब बन ( जंगल पा पानो ) को प्राप्त होकर प्रात्मा को शून्यता से रहित हो गया, उसे स्वीकार करके याद रखने लगा एवं अपने प्रापके नाम पर के अनुस्वार मे गरिन रजक प्रर्थात् घोबो होकर प्रात्मा को शुद्धि करने लगा। शुद्धोपयोगमादानु शुभाच्छभनरं दधी। उपयोग म योगं चाप्य भादनिदग्गः ।१९। ___प्रथं वह शुद्धोपयोग को प्राप्त करना चाहता था, अपनी प्रात्मा को सघया निमल करना चाह रहा था, प्रतः प्रशुभोपयोग और प्रशुभयोग से एकदम दूर होकर उत्तरोतर भले में भले योग को धारण कर भले से भले उपयोग को उमने प्राप्त किया। माम्यं फनिल मामाद्य विवेकोनमवाग्निः । धौतुमाग्भनान्माग्य - पटप महामनाः ।२०। प्रयं-उस विशाल दिलके धारक महापुरुषने माम्पभाव (शत्रु मित्र वगैरह में एकमा विचार ) रूप साबुन लेकर विवेकरूप पवित्र जल के द्वारा अपने प्रात्मरूप कपड़े को धोना शुरू किया।
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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