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________________ प्रणामि शेपानपि नीर्थ नाथान ममम्ति येपां गुणपूर्णगाथा । मान्यगर्ने पनने जनायाऽनुकीनिता लम्बनसम्प्रदा या ।३। वर्ष:-शेष तोपंडूरों को भी में नमस्कार करता हूँ मिनके कि गुणों का गान करना, इस संसाररूप अन्धकूप में पड़ते हये प्राग्गोको बचाने के लिये हस्तावलम्बनस्वरूप होता है। श्रीमजिनेन्द्रम्यपदाम्बुजान द्वयंप्रणम्यानिशयान्मयाऽन: ममति यदव्यमिलिन्दसमद ममुच्यने सम्प्रति मत्यमम्पत् ।४। प्रपं:-जिसको कि भव्य पुरुषरूप भ्रमरों को सभा प्राप्त होतो गती है मे श्री जिन भगवान के चरण कमलों के युगल को नम का करके उसके बाद प्रब उन्हीं भगवान के चरणों को कृपा से सत्य सम्पत पति सच बोलने को महिमा बता रहा हूँ। अङ्गाङ्गिनार क्यनुदंऽथ घाणी जीयादिदानी जिनदेववाणी । ममम्तु दुर्दवमिदेकपाणी ममन्वयानन्दममहमाणी ।। ५ ।। प्र:-इस समय श्री जिनभगवान को वारणी जयवन्त रहे जो कि शरीर पोर प्रारमा को जुदा २ करने के लिये तो कोल्हू के समान है, पाप कर्म को काट डालने के लिये छुगे सरोसी है पौर सब लोगों को होने वाले सुख समूह को खानि है। ममम्नि काव्योदाणायमेतु गुगमहानुग्रह एव तिः। पयोनिधामनरणायसेतु व मायबागम्बहति विजेतु ।।६।। प्रबं:-- मेरे इस काध्य बनाने के लिये प्रगर कोई कारण है तो एक श्री गुरु महाराज को कृपा हो है उसोसे मैं इसमें कृत
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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