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आनन्दघन का रहस्यवाद
(४) अभिनन्दन जिन स्तवन - परमात्मा की सेवा के लिए तत्पर साधक में परमात्म-दर्शन की तीव्र आतुरता जागृत होती है । अतः इसमें परमात्म-दर्शन की पिपासा की महत्ता और उसकी दुर्लभता के विभिन्न कारणों का वर्णन है ।
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(५) सुमति जिन स्तवन - इसमें बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा के स्वरूप का वर्णन कर परमात्मा के चरणों में आत्मसमर्पण करने का वास्तविक उपाय निर्दिष्ट है ।
(६) पद्मप्रभ जिन स्तवन : - इसमें आत्मा और परमात्मा के बीच दूरी का कारण कर्म बताकर, कर्म-सिद्धान्त, युंजनकरण, गुणकरण आदि का विवेचन है ।
(७) सुपार्श्व जिन स्तवन : - इसमें एक ही परमात्मा के गुण - निष्पन्न अनेक नामों का निर्देश है ।
(८) चन्द्रप्रभ जिन स्तवन :- इसमें परमात्मा के मुखचन्द्र को देखने की तीव्र अभीप्सा तथा विविध योनियों में भटकने का इतिहास बताकर, अन्त में योग की अवंचक -साधना पर प्रकाश डाला गया है ।
(९) सुविधि जिन स्तवन : - इसमें परमात्मा की द्रव्य-पूजा की वास्तविक विधि, उसके विविध भेद तथा भाव पूजा एवं प्रतिपत्ति पूजन का महत्त्व बताया गया है ।
(१०) शीतल जिन स्तवन : - इसमें परस्पर विरोधी गुणों से युक्त परमात्मा के त्रिभंगी-स्वरूप का सम्यक् विश्लेषण है ।
(११) श्रेयांस जिन स्तवन :- इसमें अध्यात्म का लक्षण एवं उनके चार प्रकारों को बताकर भाव -अध्यात्म को ग्रहण करने पर बल दिया गया है ।
(१२) वासुपूज्य जिन स्तवन :- इसमें आत्मा की ज्ञान चेतना, कर्म चेतना तथा कर्मफल चेतना के स्वरूप का निदर्शन है ।
(१३) विमल जिन स्तवन : - अध्यात्म मार्ग के गूढ़ रहस्यों को एक के बाद एक प्रकट करने वाले आनन्दघन यहां प्रभु भक्ति में रंग जाते हैं । शुष्क दार्शनिक चर्चा के बदले परमात्मा की अपूर्व भक्ति का चित्रण करते हुए उनका हृदय उमंग और उत्साह से भर जाता है । वे बताते हैं कि जब परमात्मा के साथ एकता स्थापित होती है तो अनुपम आनन्द प्राप्त