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आनन्दधन का रहस्यवाद
अभिव्यक्ति बाह्य जीवन में आवश्यक है। जो लोग परमतत्त्व की अनुभूति को वस्तुतः प्राप्त न करके निश्चय या रहस्यात्मकता की बात करते हैं, उन्हें ओघनियुक्तिकार ने बाह्य व्यवहार का नाश करनेवाला ही कहा है।
'रहस्यवाद' शब्द का प्रयोग
रहस्य-भावना प्राचीन है, किन्तु 'रहस्यवाद' शब्द अर्वाचीन है। हिन्दी-साहित्य में इस शब्द का प्रयोग आधुनिक काल की ही उपलब्धि कहा जा सकता है, क्योंकि प्राचीन भारतीय वाङ्मय एवं मध्यकालीन सन्तों की वाणी में यह शब्द इसी रूप में प्रयुक्त नहीं है। वैसे भारतीय वाङ्मय में ऋग्वेद से लेकर उपनिषद्, गीता, जैनागमों आदि में 'रहस्य' का प्रत्यय आध्यात्मिक अर्थ में उपलब्ध है। आगे चलकर इस प्रत्यय का सुविकसित रूप हमें सिद्धों और नाथपंथियों के साहित्य में तथा मध्ययुगीन कबीर आदि निर्गुण सन्तों की वाणी में परिलक्षित होता है। लेकिन आधुनिक युग में हिन्दी काव्य-शैली के क्षेत्र में इस शब्द ने स्वतन्त्र रूप से एक वाद का ही रूप धारण कर लिया जो 'रहस्यवाद' के नाम से प्रचलित हुआ। इस प्रकार, रहस्यवाद शब्द नितान्त आधुनिक होते हुए भी एक सुस्थापित प्राचीन परम्परा का विकास है।
हिन्दी भाषा में इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने काव्य-रचना शैली के प्रसंग में ई० सन् १९२७ में 'सरस्वती' पत्रिका के मई अंक में किया। रहस्यवाद को अंग्रेजी में Misticism कहा जाता है। संभवतः हिन्दी साहित्य में रहस्यवाद शब्द का प्रयोग मिस्टिसिज्म के अनुवाद के रूप में ही प्रयुक्त हुआ है। मिस्टिसिज्म शब्द का प्रयोग अंग्रेजी साहित्य में भी प्रायः सन् १९०० के बाद ही प्रचलित हुआ है।' मिस्टिसिज्म शब्द Mystic से बना है। मिस्टिक शब्द की व्युत्पत्ति सम्भवतः ग्रीक शब्द Myste's 'मिस्टेस' अथवा Mystes 'मस्टेस' से हुई है, जिसका अर्थ है-किसी गुह्य ज्ञान प्राप्ति के लिए दीक्षित शिष्य ।
१. द कन्साइज आक्सफोर्ड डिक्शनरी, पृ० ७८२-वर्ड 'मिस्टिक', आक्म___फोर्ड १९६१ । अनन्देल का अंग्रेजी शब्दकोश भी देखिए। 2. Bonquet, P.C.-Comparative Religion (Petieam Series,
1953) p.286.