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आनन्दघन: व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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है । फिर भी, यह तभी सम्भव है जबकि किसी व्यक्ति की कृतियों में एक ही भाषा के शब्द एवं वाक्य-योजना मिलती हो । यदि अनेक भाषाओं या बोलियों के शब्द एवं वाक्य-योजनाएँ मिलती हों, तो फिर भाषा के आधार पर जन्म-स्थान के संबन्ध में निर्णय करना कठिन हो जाता है ।
भाषा के आधार पर सन्त कवियों के जन्म-स्थान का निर्णय करने में सबसे बड़ी कठिनाई यह होती है कि सन्त एक स्थान पर नहीं रहते । विभिन्न प्रान्तों एवं ग्राम-नगरों में विचरण करते रहते हैं । अतः उनकी भाषा में भिन्न-भिन्न भाषाओं के शब्दों एवं वाक्यों का समावेश होता है । यह बात सन्त आनन्दघन के स्तवनों एवं पदों में भी परिलक्षित होती है । अतः भाषा के आधार पर उनके जन्म स्थान का निर्णय करना अत्यधिक कठिन है । फिर भी, अभीतक इस दिशा में जितने प्रयास हुए हैं, उनका परिशीलन करना समुचित होगा ।
सामान्यतया आनन्दघन की कृतियों में जहां स्तवनों में गुजराती. भाषा का प्रभाव देखा जाता है, वहां उनके पदों में राजस्थानी, गुजराती और ब्रजभाषा के शब्द भी पाये जाते हैं । आनन्दघन ने पहले स्तवनों की रचना की और बाद में पदों की। इस रचना के आधार पर आचार्य वुद्धिसागर सूरि लिखते हैं कि गुर्जर देश में उनका जन्म हुआ होगा ।" इसी तरह आनन्दघन की कृतियों में विशेष रूप से शुद्ध गुजराती भाषा और गुजरात की लोक भाषा के शब्दों का प्रयोग देखकर डा० मदनकुमार जानी का यह अनुमान है कि उनका जन्म गुजरात में हुआ होगा । फिर भी, वे यह नहीं बता पाये कि आनन्दघन की भाषा में गुजरात की लोक भाषा के कौन-कौन से शब्दों का प्रयोग देखा जाता है । वस्तुतः स्तवनों की भाषा में भी गुजराती के साथ ही राजस्थानी भाषा के शब्दों, कहावतों और रूढ़ि प्रयोगों का भी विशेष प्रयोग दिखाई देता है । अतः इसे निर्णायक तथ्य नहीं माना जा सकता। फिर पश्चिमी राजस्थान और उत्तरो गुजरात की सीमाएँ एक दूसरे से मिली हुई हैं और इन सीमावर्ती प्रदेशों की बोलियों में दोनों ही भाषाओं के शब्दों का प्रयोग एवं मिश्रित वाक्यसंयोजना देखी जाती है। अतः इससे इतना हो कहा जा सकता है कि
१.
२.
श्रीआनन्दघन पद संग्रह, पृ० १२४-२५ ॥
राजस्थान एवं गुजरात के मध्यकालीन सन्त एवं भक्त कवि,
पृ. १९०