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________________ ७० आनन्दघन का रहस्यवाद नागरीदास का कविता काल १७८० से १८१९ माना गया है।' 'छप्पन भोग चन्द्रिका' में कृष्णगढ़ के राजकवि जयलाल वृन्दावनवासी घनानन्द को नागरीदास का समसामयिक मानते हैं। बाबू राधाकृष्णदास ने उल्लेख किया है कि "हमारे यहां एक अत्यन्त प्राचीन चित्र है जिसमें नागरीदासजी और घनानन्दजी एक साथ विराजते हैं"।३ उक्त उद्धरणों से स्पष्ट प्रतीत होता है कि आनन्दघन और घनानन्द के एक होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती, क्योंकि जैन आनन्दघन और वृन्दावनवासी घनानन्द या आनन्दघन के समय में लगभग सौ वर्ष का अंतर है। __इसके अतिरिक्त घनानन्द निम्बार्क संम्प्रदाय में दीक्षित हुए और इन्होंने परमहंस-वंशावली में स्पष्टरूप से अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है जबकि आनन्दघन जैन-श्वेतांबर सम्प्रदाय में दीक्षित हुए हैं। यद्यपि इन्होंने कहीं भी अपनी कृतियों में गुरु-परम्परा का परिचय नहीं दिया है। इस प्रकार, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि आनन्दघन और घनानन्द दोनों पृथक्-पृथक् व्यक्ति हैं। जन्म-स्थान ___ आनन्दघन निःस्पृह साधक थे। उनके जन्म-स्थान एवं तिथि का निर्धारण कर पाना एक दुष्कर कार्य है, क्योंकि उन्होंने अपनी कृतियों में कहीं भी इन बातों का निर्देश नहीं किया है और न किसी अन्य समकालीन रचनाकार ने ही उनकी जन्म-तिथि और जन्म स्थान आदि का उल्लेख किया है। इस संबन्ध में स्पष्ट अन्तःसाक्ष्य और बहिःसाक्ष्य दोनों का अभाव है। वस्तुतः सन्त का जन्म और मरण महत्त्वपूर्ण नहीं माना जाता। वह तो यशः शरीरी होता है। फिर भी, इन तथ्यों पर प्रकाश डालना हमारा कर्तव्य है। ___ आनन्दघन के जन्म-स्थान के संबन्ध में भाषा-शैली के आधार पर विद्वानों द्वारा विभिन्न कल्पनाएँ की गई हैं। भाषाशास्त्रियों का कथन है कि व्यक्ति की भाषा के आधार पर जन्म-भूमि का निर्णय किया जा सकता १. धन आनन्द कवित्त-विश्वनाथप्रसाद मिश्र, प्रस्तावना, पृ० १६ । २. वही, पृ० १५। ३. राधाकृष्णदास ग्रन्थावली, पृ० १७२, उद्धृत-धन आनन्द कवित्त पृ०१५।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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