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रहस्यवाद : एक परिचय अर्थ में रहस्य शब्द का प्रयोग हुआ है।' इसी तरह अभिधान-चिन्नामनि में भी गुह्य अर्थ में रहस्य शब्द व्यवहत हुआ है। पाइअ-सह-महण्णव में रहस्य शब्द के अनेक अर्थ दिए गए हैं यथा-गुह्य, गोपनीय, एकान्त में उत्पन्न, तत्त्व, भावार्थ, अपवाद-स्थान आदि ।' धवला में अन्तराय कर्म को रहस्य कहा गया है। अन्तराय कर्म का अवशिष्ट नाश तीन घातिया कर्मों के नाश का अविनाभावी परिणाम है और अन्तराय कर्म का नाश होने पर अघातिया कर्म दग्ध बीज के समान शक्तिरहित हो जाते हैं।
जैनेतर कोशों में भी 'रहस्य' शब्द के भिन्न-भिन्न अर्थ पाए जाते हैं। अमरकोश में रहस् का अर्थ विविक्त, विजन, छन्न, निःशलाक, रहः, रपांशु और एकान्त किया गया है ।५ मेदिनीकोश में रहस् शब्द की दृष्टि से उसका अर्थ 'रहस्तत्त्वे रमे गुह्ये' जैसे प्रमाणों के आधार पर 'तत्त्व' अथवा 'सार पदार्थ' है। रहस्य शब्द भेद, मर्म या सारतत्त्व के पर्यायवाची के रूप में भी प्रयुक्त हुआ है। इस प्रकार, भिन्न-भिन्न कोशों में रहस्य शब्द के विभिन्न अर्थ होने पर भी सब अर्थों से 'गोपनीयता' का बोध ही अधिक होता है । किन्तु उक्त अर्थों के अतिरिक्त रहस्य शब्द खेल, विनोद, मजाक, मश्करी, मैत्री, स्नेह, प्रेम एवं पारस्परिक सद्भाव जैसे अन्य अर्थों में भी व्यवहृत हुआ है।
१. पाअ-टच्छी नाममाला कोन. गाथा २७१ । २. गुह्ये रहस्य........। अभि धान चिन्तामणि कोश, ७४२ । ३. पाअ-गद-महष्णवो, पृ० ७०८ । ४. रहस्यमन्तरायः, तस्य शेष घाति त्रितय विनाशा-विनाभाविनो भ्रष्ट
बीजवनिःशक्ति कृता घाति कर्मणोः -धवला १.१.१, १.४४.४ । उद्धृत-जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग ३, पृ० ४०७ । विविक्त विजनः छन्नानिः शलाकास्तथा रहः । रहस्योपांशु चालिंग रहस्यं तद्भवे त्रिषु ॥
-अमरकोश २।८, २२-२३ एवं अभिधान चिन्तामणि कोश, ७ ४१ । ६. 'मेदिनी कोश,' उद्धृत-रहस्यवाद, आचार्य परशुराम चतुर्वेदी,
७. भगवद् गोमण्डल, भाग ८, पृ० ७५५ । ८. महाराष्ट्र शब्दकोश (भाग ६), पृ० २५९८ ।