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________________ आनन्दघन का रहस्यवाद में किया है तो कहीं प्रियतम के रूप में। प्रियतम राम के साथ कबीर की अनन्य प्रीति निम्नांकित रूप में द्रष्टव्य है : अब तोहि जान न देहूँ राम पियारे, ज्यूं भावै त्यूँ होइ' हमारे । बहुत दिनन के बिछुरे हरि पाए, भाग बड़े घरि बैठे आए ॥' प्रियतम के घर आने पर कबीर की आत्मारपी प्रियतमा आनन्द विभोर हो उठतो है। प्रियतम को देखते ही कबीर की साधक आत्मा रामरूपी प्रियतम के रंग में ऐसी रंग जाती है कि चारों ओर उसे प्रियतम की लाली ही दिखाई देती है। किन्तु कबीर द्वारा राम की प्रियतम के रूप में की गई उपासना में भी योग-साधना का रहस्य समाहित है। उसकी यह साधना अन्तर्साधना बन जाती है और वह गूढ प्रतीक रूप में अभिव्यक्त होती है। कबीर की रचनाओं में विरह-भाव गढ़ एवं सूक्ष्म तत्त्वों की अनुभूतियों को प्रकट करता है। सूफीवाद के कारण कबीर में निर्गुण राम के प्रति असीम प्रेम है। उनकी विरह-वेदना अत्यन्त मार्मिक रूप में अभिव्यक्त जियरा मेरा फिरै रे उदास । राम बिन निकली न जाई सास, अजहूँ कौन आस ।' १. कबीर ग्रन्थावली, पृ० ८७ । २. दुलहिनि गावहु मंगल चार। हमरे घर आए हो राजा राम भरतार । तन रति करि में मन रति करिहौं पञ्चतत बराती । रामदेव मोरे पाहुनै आए मैं जोबन मदमाती ॥ -वही, पृ० ८७। ३. लाली मेरे लाल की जित देखो तित लाल । लाली देखन मैं गई मैं भी हो गई लाल ॥ -वही, पृ० ४२५ । ४. षट्दल कमल निवारिया चहुँकौं फेरि मिलाइ रे । अष्टकमलदल भीतरां तहां श्रीरंग कलि कराइ रे ॥ -वही, पृ० ८८। ५. वही, पृ० १२४ ।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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