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________________ आनन्दघन का भावात्मक रहस्यवाद ३२५ के रंग में रंगी हुई रुचिकर झीनी साड़ी धारण की है, भक्ति रूपी मेंहदी रचाकर और भाव का सुखदायक अंजन लगाया है । तदनन्तर सहज स्वभाव रूपी चूड़ियाँ और स्थिरता रूपी बहुमूल्य कंगन धारण किया है । ध्यान रूप उर्वशी - गहना वक्षस्थल पर रखा है और पिय के गुण-रत्नों की माला ( रत्नत्रय) को गले में पहना है । सुरत रूप सिन्दूर से मांग को सजाया है और निवृत्ति रूप वेणी को आकर्षक ढंग से गूंथा है । इस प्रकार, समता-प्रिया सोलहों शृङ्गार से सजकर प्रिय के मुक्ति महल में जाने हेतु गुणस्थान रूप सीढ़ियों पर चढ़ती है, तब उसके घट में त्रिभुवन की सबसे अधिक प्रकाशमान अनुभव ज्ञान रूपी ज्योति प्रकट हो गई, जिससे केवल ज्ञान रूप शुद्धात्म-दर्पण में मन मोहक प्रिय का रूप छलक उठा । प्रिय को देखते ही अजपाजाप की ध्वनि उत्पन्न हो गई और द्वार पर अनहदनाद के विजय नगारे बजने लगे । अब तो आनन्द-मेघ की अनवरत झड़ी लग गई और मन- मयूर उस आनन्द में एक तार हो गया-लवलीन हो गया : प्रेम प्रतीत राग रुचि रंगत, पहिरे जीनी सारी । महिंदी भक्त रंग की राचो, भाव अंजन सुखकारी ||२|| सहज सुभाव चूरियां पेनी, थिरता कंगन भारी । ध्यान उरवसी उर में राखी, पिय गुन माल आधारी ॥३॥ सूरत सिंदूर मांग रंग राती, निरतें बेनी समारी । उपजी ज्योत उद्योत घट त्रिभुवन, आरसी केवल कारी ॥४॥ धुनि अजपा की अनहद, जीत नगारे वारी । झड़ी सदा आनन्दघन बरखत, बन मोर एकन तारी ॥५॥ १ आनन्दघन रूप आत्म-प्रिया का परम सौभाग्य है कि चिरकाल के पश्चात् उसके भीतर निरंजन देव स्वयं प्रकट हुए हैं । इसलिए वह दृढ़तापूर्वक कहती है कि अब निरंजन आत्मा ही मेरा पति है । इसका ही मुझे अवलंबन है। अब उसे इधर-उधर कहीं भटकने की और सिर झुकाने की आवश्यकता नहीं है और न किसी को प्रसन्न करने की । साथ ही, उसे अपने निरंजन रूप पति को देखने के लिए खंजन पक्षी के नेत्र के १. आनन्दघन ग्रन्थावली, पद ८६ ।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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