________________
आनन्दघन का भावात्मक रहस्यवाद
३०५
अरे जोशीराज ! अपने पंचांग में राशिबल, चन्द्रबल, ग्रहबल, और लग्नअंशबल आदि देखकर यह बताओ की रमता राम चेतन और उसकी पत्नी समता का मिलन कब होगा? उसकी विरह-व्यथा कब दूर होगी ?
वास्तव में समता-विरहिणी लम्बे विरह से थक कर जर्जरित हो गई है। इसलिए कभी वह अपनी विरह-व्यथा के गीत अनुभव को सुनाती है तो कभी विवेक को और कभी अपनी सखी श्रद्धा के पास विरह-दुःख को कहकर हृदय हल्का करती है। यह मानवीय स्वभाव है कि वह अपने दुःख को अन्य व्यक्ति को सुनाकर अपने दुःख का बोझ कुछ हल्का करना चाहता है। इससे उसे कुछ शान्ति मिलती है। समता को विरहकाल अति दीर्घ और असह्य लगता है और जब उसके धैर्य का बांध टूट जाता है तब वह विरह-व्यथा से मुक्त होने के लिए ज्योतिषज्ञ का सहारा लेती है। यह शत-प्रतिशत सत्य है जब व्यक्ति चारों ओर से निराश और हताश हो जाता है तब वह अपना भविष्य जानने के लिए ज्योतिषशास्त्र का अवलम्बन लेता है। विशेषरूप से विरहिणी स्त्रियाँ ज्योतिष में अधिक विश्वास रखती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि आनन्दघन के समय में भी ज्योतिषशास्त्र का अधिक प्रचार-प्रसार रहा होगा। सम्भवत: इसीलिए उन्होंने समता और चेतन के मिलन के विषय में ज्योतिषज्ञ से प्रश्न किया है।,
मिलन की प्रतीक्षा
दर्शन और मिलन की अभिलाषा के साथ-साथ प्रतीक्षा और आशा की अवस्था की ध्वनि भी आनन्दघन में देखी जा सकती है। 'प्रतीक्षा' को फारसी काव्यशास्त्र की दृष्टि से इन्तजारी' और 'बेकरारी' की अवस्थाओं का मिला-जुला रूप कहा जा सकता है। जैसे प्रेमी या विरहिणी. स्त्री अपने पति के आने की बाट जोहती रहती है, वैसे ही परमात्मा के साथ विशुद्ध प्रीति करने वाला साधक भो परमात्मा से विरह हो जाने से अन्तरात्मा में उनके पधारने की बाट जोहता या प्रतीक्षा करता रहता है। विशुद्ध आत्म-भाव के पथिक साधक आनन्दघन को अन्तरात्मा भी परमात्मा के पथ को निष्ठापूर्वक निहारने में लगी हुई है। वे जागृत होकर अन्तहृदय से पुकार उठते हैं :