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________________ २७४ आनन्दघन का रहस्यवाद है।' आनन्दघन के पदों में चेतन और समता के विरह-मिलन के सन्दर्भ में भी 'अनुभव' शब्द का बहुलता से प्रयोग हुआ है। इससे स्पष्ट होता है कि भावनात्मक अनुभूतिप्रधान रहस्यवाद में 'अनुभव' का अपना एक विशिष्ट महत्त्व है। आनन्दघन में केवल नाचनात्मक रहस्य-भावना है, प्रत्युत भावनात्मक अनुभूतिमूलक रहन्य-भावना के भी दर्शन होते हैं। वस्तुतः साधनात्मक और भावनात्मक दोनों अनुभूति का सुन्दर समन्वय होने से उनके रहस्यवाद के सम्बन्ध में सोने में सुगन्ध' की कहावत पूर्णतः चरितार्थ होती है। भावात्मक अनुभूतिमूलक रहस्यवाद में अध्यात्म की भावनात्मक विवेचना होती है। आनन्दघन की विवेचना ग्यानु-म्पूिर्ण तथा अतीन्द्रिय पराबौद्धिक ज्ञान पर आधारित है। उनकी कृतियों का सम्यक् अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि उनमें आध्यात्मिक अनुभव चरम सीमा पर पहुँच गया है, फलतः उनकी वाणी में भी वही आध्यात्मिकता का पीयूष झर रहा है। ___ भावप्रधान अनुभूति ही रहस्यवाद का प्राण है। आनन्दघन का मुख्य प्रयोजन शुद्धात्म तत्त्व को अनुभूति है। चेतन (आत्मा) को ममता, माया, मोह, लोभ, राग-द्वेष आदि वैभाविक परिणतियों से मुक्त कर आत्मोपलब्धि कराना है। इसके लिए उन्होंने समता और चेतन को पति-पत्नी का रूपक देकर दर्शन और अध्यात्म के गूढ़वाद (रहस्यवाद) को अतीव मनोरम ढंग से व्यक्त करने की चेष्टा की है। यद्यपि आनन्दघन जैसे महान् अध्यात्मवेत्ता की स्वानुभूतिपूर्ण रहस्यभावना की व्याख्या करना सरल नहीं है, क्योंकि उनकी गहरी एवं तीव्र आध्यात्मिक अनुभूति उस परमसत्ता से सम्बद्ध है जो साधारण जन के लिए अदृश्य, अग्राह्य एवं अगम्य है। वस्तुतः आनन्दघन 'आत्मा के प्रेमी' हैं जो कि समग्र अनुभूतियों का केन्द्र है और सम्भवतः इसीलिए उनमें रहस्यवाद के सभी तत्त्व सहज रूप में पाए जाते हैं। १. आत्मात्मानुभवैकगम्यमहिमा व्यक्तोऽयमास्ते ध्रुवं । नित्यकर्मकलंकपंक विकलो देवः स्वयं शाश्वतः ॥ -समयसार, पृ० ३८ ।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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