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आनन्दघन का रहस्यवाद
समाधि सूत्रकृतांग चूणि में समाधि का लक्षण बताया है
समाधिर्नामः राग-द्वेष परित्यागः ।। राग-द्वेष का त्याग ही समाधि है। समाधि दो प्रकार की होती है-एक सालम्बन और दूसरी निरालम्बन। निरालम्बन समाधि ही निर्विकल्प समाधि कहलाती है। वस्तुतः समाधि शब्दों द्वारा वर्णन करना कठिन है। वह अनुभवजन्य बोध है।
आनन्दघन ने भी समाधि की अवस्था का निर्देश किया है। मन्त्रयोग
मन्त्रयोग का विषय अतिविशद् है। अतः यहां हम मन्त्रयोग के अन्तर्गत् केवल जप साधना पर ही प्रकाश डालेंगे।
योग-साधना में जप का महत्त्वपूर्ण स्थान है। गीता में 'यज्ञानाम् जप यशोऽस्मि' कहकर जप की महत्ता प्रदर्शित की है। ___ जप के अनेक भेद-प्रभेद हैं। फिर भी मुख्यतः जप तीन प्रकार का है-भाष्य जप, उपांशु जप और मानस जप ।
आनन्दघन ने मानस जप को सर्वाधिक महत्त्व दिया है। इस मानस जप का सबसे सुन्दर और महत्त्वपूर्ण रूप अजपाजाप है। योगीजन अधिकांशतः इसी अजपाजाप की साधना करते हैं। ___ अजपाजाप मानस जप का एक प्रकार है। अजपाजाप से अभिप्राय है जिसके अनुसार साधक बाह्य जीवन का परित्याग कर आभ्यन्तरित जीवन में प्रवेश करता है। इस अजपाजाप में श्वासोच्छ्वास को क्रिया के साथ ही साथ मन्त्रावृत्ति की जाती है। अजपाजाप का सम्बन्ध नादसाधना से माना जाता है। सन्त आनन्दधन ने भी अनेक पदों में अजपाजाप का निर्देश किया है। एक पद में वे इसकी चर्चा करते हुए कहते
आसा मारि आसण धरि घट में, अपजाजाप जगावै।
आनन्दघन चेतन मै मूरति, नाथ निरंजन पावै ॥२ १. सूत्रकृतांग चूर्णि, १।२।२। २. आनन्दघन ग्रन्थावली, पद ५७ ।