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________________ २६६ आनन्दघन का रहस्यवाद श्रासन आसन प्रायः किसी विशेष प्रकार से बैठने को कहते हैं । इसलिए यमनियम के पश्चात् आसन योग का ही स्थान अष्टांग योग में आता है । आसन में शरीर का शिथिलीकरण ही मुख्य है । प्राणायाम अष्टांग योग में प्राणायाम को महत्त्वपूर्ण माना गया है। रेचक, पूरक और कुंभक - ये तीन प्राणायाम के अंग है । श्वास को बाहर निकालने की क्रिया रेचक है, श्वास को अन्दर खींचने की प्रक्रिया पूरक और श्वास को स्थिर रखना कुंभक कहलाता है। आनन्दघन ने भी रेचक, पूरक और कुंभक का नामोल्लेख किया है । ' जैनयोग के अन्तर्गत् प्राणायाम का विशेष अर्थ भावशुद्धि के निमित्त हुआ है, किन्तु योग-साधना की दृष्टि से अनावश्यक माना गया है। जैन प्रक्रिया के अनुसार विजातीय द्रव्य का रेचन और अन्तरभाव में स्थिर होना कुंभक है । चित्त की एकाग्रता के लिए यही प्राणायाम है । जै परम्परा में द्रव्य प्राणायाम की अपेक्षा भाव प्राणायाम पर बल दिया गया है । इस बात की पुष्टि उपाध्याय यशोविजय के निम्नांकित कथन से होती है : बाह्य भाव रेचक इंहाजी, पूरक अन्तर भाव । कुक थिरता गुणे करीजी, प्राणायाम स्वभाव | परमात्मा ने विद्या का विरेचन कर रेचक प्राणायाम किया है और स्वभाव दशा को प्राप्त कर पूरक प्राणायाम किया है तथा मेरुवत् निष्प्रकंप सहजात्म स्वरूप में स्थिर हो कर कुंभक प्राणायाम किया है । आसन और प्राणायाम को ही नामान्तर से हठयोग कहते हैं । प्राणायाम के सम्बन्ध में जैनागमों में अधिक नहीं कहा गया है, क्योंकि आसन, मुद्रा, प्राणायाम आदि हठयोग के अन्तर्गत आते हैं । प्रत्याहार प्रत्याहार का अर्थ है लौटाना । इन्द्रियाँ अपने विषयों से लौटायी जाती हैं या लौट जाती हैं, इसलिए इस प्रक्रिया को 'प्रत्याहार' कहते हैं | योग१. रेचक पूरक कुंभककारी, मन इन्द्री जयकारी । —-आनन्दघन ग्रन्थावली, पद ७५ ।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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