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________________ आनन्दघन के रहस्यवाद के दार्गनिक आधार २४९ प्रकटीभत परम आनन्द या आत्मा की आनन्दमय (आनन्दघन ) अवस्था ही मुक्ति अथवा मोक्ष है और यही आत्मा का परम एवं चरम साध्य है। मुक्ति के उपाय ___आनन्दघन ने मात्र आत्मा के साध्य को ही स्थिर नहीं किया, प्रत्युत उस साध्य तक पहुंचने और उसे प्राप्त करने के उपायों की भी चर्चा की है । अब प्रश्न यह है कि मुक्ति-प्राप्ति के उपाय अथवा साधन कौन से हैं। साध्य की सिद्धि के लिए आनन्दघन ने किन साधनों का अवलम्बन लिया ? भारतीय परम्परा में साध्य की सिद्धि के लिए जिन साधनों या उपायों का सहारा लिया जाता है, उन्हें 'मुक्ति के उपाय' अथवा 'साधन' के नाम से जाना जाता है और जिस क्रिया से साध्य की सिद्धि होती है, उसे 'साधना' कहा जाता है। ___ जैनधर्म में मुक्ति-प्राप्ति के उपाय के रूप में रत्नत्रय की साधना सुप्रसिद्ध है। 'रत्नत्रय' जैनधर्म का पारिभाषिक शब्द है। रत्नत्रय की साधना से अभिप्राय है-सम्यग्दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक् चारित्र की आराधना। इस रत्नत्रय को ही जैन दार्शनिक उमास्वाति ने मुक्ति का मार्ग बताते हुए कहा है सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ।। आचार्य उमास्वाति से लेकर परवर्ती सभी दार्शनिकों ने मुक्ति-प्राप्ति के उक्त तीन उपाय बताए हैं । इन तीनों की सम्यक् साधना परिपूर्ण होती है तभी साध्य की सिद्धि होती है । इन तीनों को वैदिक भाषा में मुक्ति प्राप्ति के उपाय के रूप में क्रमशः भक्ति, ज्ञान और कम कहा गया है। किन्तु उसमें इन तीनों के समन्वित रूप पर बल नहीं दिया गया। किसी ने भक्ति के द्वारा मुक्ति-प्राप्ति बतायी है तो किसी ने ज्ञान द्वारा। जबकि जैनदर्शन में इन तीनों में से किसी एक के द्वारा मुक्ति-प्राप्ति नहीं बतायी गई। उनके अनुसार सम्यग्दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र-इन तीनों की समुचित रूप से साधना करने पर ही आत्मोपलब्धि या मुक्ति प्राप्ति संभव है । वस्तुतः निश्चय-नय को दृष्टि से तो ये तीनों आत्मा के निज स्वरूप १. तत्त्वार्थसूत्र, ११२।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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