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________________ २३६ आनन्दघन का रहस्यवाद ___ मनुष्य के सामने दो ही लक्ष्य (साध्य) हो सकते हैं-एक भुक्ति (भौतिक पदार्थों को पाना) और दूसरा मुक्ति। दूसरे शब्दों में, भौतिक सुख और आत्मिक सुख । लेकिन प्रश्न यह है कि वह इन दोनों में से आत्मा का साध्य किसे माने ? यदि भौतिक पदार्थों को आत्मा का साध्य माना जाय तो वे नश्वर, क्षणभंगुर और अशाश्वत् हैं। जितने भी भौतिक पदार्थ हैं, वे सब क्षणिक सुख देनेवाले हैं। इसलिए ऐसे पदार्थों में सुख नहीं, सुखाभास है। इस दृष्टि से भौतिक सुख आत्मा का साध्य कदापि नहीं हो सकता। किन्तु मनुष्य आज अपना साध्य भूलकर पर-पदार्थों को पाने की आशा में ही यत्र-तत्र भटक रहा है। आनन्दधन ने कहा है : आशा औरन की कहा कीजै, ज्ञान सुधारस पीजै । भटकै द्वारि-द्वारि लोकन कै, कूकर आसाधारी । आतम अनुभव रस के रसिया, उतरई न कबहु खुमारी ॥' दूसरों की आशा क्या करना ? जो अपने नहीं हैं उनसे क्या आशा रखी जाय ? जो स्वयं पराश्रित हो, वह क्या सुख दे सकती है। संसार के समस्त पौद्गलिक पदार्थ पराश्रित हैं, क्षणिक हैं। इसलिए उन पौद्गलिक पदार्थों से सुख की आशा करना उचित नहीं। परायी आशा पर क्या जीना ? आनन्दघन कहते हैं कि इस आशा-तृष्णा को छोड़कर साधक ज्ञानरूप अमृत का रसास्वादन करें। ज्ञानामृत का पान करने से ही सुख की प्राप्ति हो सकती है। लेकिन जो पौद्गलिक सुखों की आशा-तृष्णा के पीछे दौड़ते रहते हैं वे उस कुत्ते की भांति हैं जो एक रोटी के टुकड़े को पाने की आशा में घर-घर भटकता फिरता है। इसके विपरीत, जो आत्मानुभव के रसिक जन हैं, वे ज्ञानामृत का पान कर मग्न हो जाते हैं और सदैव आत्मानुभव में ही डूबे रहते हैं। इस प्रकार, आनन्दघन के अनुसार आत्मा का साध्य न तो स्वर्ग का सुख है और न भौतिक सुख ही। उनके अनुसार आत्मा का साध्य ऐसा आध्यात्मिक आनन्द हो सकता है जो पूर्ण एवं शाश्वत् हो। जो अपूर्ण एवं क्षणभंगुर है, वह सुख नहीं हो सकता। छान्दोग्य उपनिषद् में भी कहा गया है कि जो पूर्ण है वही सुख है। अल्प में सुख नहीं है। इसलिए पूर्ण १. आनन्दघन ग्रन्थावली, पद ५८ ।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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