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________________ आनन्दघन के रहस्यवाद के दार्शनिक आधार २३५ उपर्युक्त विवेचन से यह निष्कर्ष निकलता है कि आनन्दघन ने शास्त्रीय दृष्टि से बन्धन के कारण के रूप में आस्रव का उल्लेख किया है, वहीं व्यावहारिक दृष्टि से उन्होंने राग, द्वेप और मोह को संसार का कारण बताया है। प्रात्मा का साध्य-मुक्ति, प्रानन्द __ आत्मा का बन्धन कम है और कम के बन्धन से छुटकारा पाना ही मोक्ष है। प्रश्न यह है कि बन्धन से मुक्ति कैसे मिले ? वन्धन से मुक्त होने की प्रक्रिया को जानने के पूर्व यह जानना भी आवश्यक है कि आत्मा का साध्य क्या है और उसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? साधक के लिए साध्य का परिज्ञान होना अतीव आवश्यक है, क्योंकि साध्य का ज्ञान होने पर ही साध्य को पाने की तीव्र जिज्ञासा उत्पन्न होती है। वस्तुतः साधक साधना के द्वारा जिस साध्य को पाना चाहता है उसका स्पष्ट बोध आवश्यक है अन्यथा अनेकविध साधनाएँ करने का कोई प्रयोजन नहीं रह जाएगा। साध्य के स्वरूप को जानने का एक कारण यह भी है कि साध्य की जानकारी के अभाव में साधक के निरुत्साहित एवं हताश होने की सम्भावना है, क्योंकि उसके सामने यह समस्या है कि वह किसके लिए साधना करे, किस साध्य को सिद्ध करे अथवा किस ध्येय या लक्ष्य को प्राप्त करे ? इस दृष्टि से भी साध्य के स्वरूप का स्पष्ट बोध परमावश्यक है। ___ मनुष्य का जीवन एक यात्रा की भांति है। अतः यह सही है कि जीवनयात्रा निरुद्देश्य नहीं होती। जीवन है तो जोवन की यात्रा का लक्ष्य या साध्य भी होना चाहिए, क्योंकि लक्ष्यहीन यात्रा करने का कोई अर्थ नहीं है। संस्कृत में एक प्रसिद्ध उक्ति है 'प्रयोजनं विना मन्दोऽपि न प्रवर्तते'-अर्थात् बिना प्रयोजन के एक मूर्ख भी किसी कार्य में प्रवृत्त नहीं होता। कवि बनारसीदास ने भी कहा है 'काज बिना न करे जिय उद्यम'' -किसी कार्य को लक्ष्य में रखे बिना जीव कोई उद्यम-प्रयत्न नहीं करता। यही बात आध्यात्मिक जगत् में भी घटित होती है। किन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से की गई साधनाओं या क्रियाओं का लक्ष्य भौतिक न होकर आध्यात्मिक ही होता है । १. समयसार-नाटक।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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