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________________ २३२ आनन्दघन का रहस्यवाद ૨ ७ . है। समयसार,' गोम्मटसारकर्मकाण्ड, योगवार- प्रान्तरे तथा कर्म - ग्रन्थ४ में बन्धन के चार कारण वर्णित हैं । वे हैं - मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग । समवायांग, इसिभाषित एवं तत्त्वार्थसूत्र में प्रमाद सहित बन्धन के पाँच कारण माने गए हैं। बृहद्रव्यसंग्रह, “ कम्मपयडि आदि में कषाय और योग को ही बन्धन का कारण बताया गया है । इन्हीं बन्ध-हेतुओं को 'आस्रव' की संज्ञा दी गई है। वस्तुतः उक्त सभी बन्धन के हेतु आस्रव हैं और आस्रव के ही ये भेद कहे जा सकते हैं । इसीलिए आनन्दघन ने मिथ्यात्व आदि बन्ध-हेतुओं की चर्चा न कर बन्धन के मूलभूत कारण आस्रव का ही उल्लेख किया है । लौकिक मान्यता में राग-द्वेष और मोह को संसार (बन्धन) का कारण माना गया है | आनन्दघन के दर्शन भी इसकी किंचित् झाँकी मिलती १. सामण्ण पच्चया खलु चउरो भण्णंति बंध कत्तारो । मिच्छत्तं अविरमं कसाय जोग य बोधव्वा ॥ समयसार, १०९ । २. मिच्छत्तं अविरमणं कसाय जोगाय आसवो होति । - गोम्मटसार काण्ड, ७८६ । ३. मिथ्या दृक्त्वमचारित्रं कषायो योग इत्यमी । चत्वार: प्रत्ययाः सन्ति विशेषेणाद्य संग्रहे ॥ — योगसार- प्राभृत-अधिकार, ३, पद्य २ । ४. बंधस्स मिच्छ अविरइ, कसाय जोगति चउ हेउ । ५. - चतुर्थ कर्मग्रन्थ, गाथा ५० ॥ पंच आसव दारा पण्णता - मिच्छत्तं, अविरई, पमाया, कसाया, जोगा । —समवायांगसूत्र, पंचम समवाय, १८ एवं स्थानांग, ४१८ । ६. इसिभासियाई, ९।५ । ७. मिथ्यादर्शनाविरति प्रमाद कषाय योगा बन्धहेतवः । __—तत्त्वार्थसूत्र, ८।१ ८. जोगा पर्याड पदेसा ठिदि अणुभागा कसायदो होति । -- बृहद्रव्यसंग्रह, गाथा ३३ । एवं जोगा पर्याड पठिs अणुभागं कसायओ कुणइ । —— पंचम कर्मग्रन्थ, ९६ ।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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