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आनन्दघन का रहस्यवाद
हीलर ऐसी मानसिक अनुभूति को अनन्त के प्रति समर्पण और समाधि बताते हैं । उनके अनुसार - "रहस्यवाद में मूलभूत मानसिक
भूत जीवन के आवेग से इन्कार है, जीवन की थकान से इन्कार है । अनन्त को निःसंकोच समर्पण और जो समाधि है उसकी पराकाष्ठा है.." रहस्यवाद जीवन की निष्क्रियता, शान्तता, वीतरागी और चिन्तनशील है।""
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सी०एफ० ई० स्पर्जन (C. F. E. Spurgeon) रहस्यवाद को स्वभाव विशेष और वातावरण विशेष कहते हैं । उनके अनुसार " वास्तव में रहस्यवाद किसी धार्मिक मत की अपेक्षा एक स्वभाव विशेष है और दार्शनिक पद्धति की अपेक्षा एक वातावरण विशेष है ।"२
इस प्रकार, चेतना, संवेदन, अनुभूति और मनोवृत्ति के रूप में, रहस्यवाद की उपर्युक्त व्याख्याएँ एवं परिभाषाएँ उसके दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक पक्ष को ही अभिव्यक्त करती हैं । ये केवल उसके शास्त्रीय पहलू पर वल देती हैं उसकी व्यावहारिकता पर नहीं ।
'विशुद्ध चेतना' को महत्त्व देनेवाली रहस्यवाद की व्याख्याएँ मानसिक वृत्तियों के मूल स्रोत तक अथवा अन्तिम सूक्ष्म ज्ञानपरक स्थिति तक ले जाकर कोरे तत्त्वज्ञान का ही परिचय देती प्रतीत होती हैं ।
'संवेदन' को महत्त्व देने वाली परिभाषाओं में भी यही दोष परिलक्षित होता है । यद्यपि 'अनुभूति' परक व्याख्याएँ व्यावहारिकता का विचार करती है, तथापि वे व्यक्तिगत सीमा तक ही सीमित हैं और उसमें भी आन्तरिक संवेदन की ही प्रधानता दिखाई देती है । अन्तिम 'मनोवृत्ति' परक व्याख्याओं में व्यावहारिक रूप दृष्टिगत होता है और उसे मनोवृत्ति अथवा स्वभाव विशेष बताया गया है। साथ ही वह एकमात्र आन्तरिक प्रक्रिया नही रहती । तदुपरान्त वह व्याख्या भी आध्यात्मिक दृष्टि से
1. Quoted in 'Eastern Religion and Western Thought', p. 66.
2. Mysticism is, in truth a temper rather than a doctrine, an atmosphere rather than a system of philosophy.
Quoted in Mysticism in the Bhagvad Gita by Dr. M. N. Sircar (Calcutta, 1944), p. V (Preface ).