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आनन्दघन का रहस्यवाद
करने पर यह विदित हुए बिना नहीं रहता कि उन पर कबीर की शैली का प्रभाव अवश्य रहा है। अनेकान्त-दृष्टि
सन्त आनन्दघन के रहस्यवाद में उपर्युक्त विवेचन-पद्धतियों के अतिरिक्त जैन परम्परा के अनेकान्त, स्याद्वाद, सप्तभंगी और नयवाद का का प्रभाव भी स्पष्टतः परिलक्षित होता है। उन्होंने अनेकान्तवाद और नयवाद द्वारा सहज सुलभ भाषा में तत्त्वज्ञान के रहस्य को उद्घाटित किया है।
यद्यपि जैनागमों में अनेकान्त-दृष्टि के विचार बीज रूप में निहित हैं, किन्तु उसका पुष्पित एवं पल्लवित रूप पश्चात्वर्ती जैनाचार्यों के साहित्य में दिखाई देता है। वस्तुतः अनेकान्त-दष्टि को दार्शनिक धरातल पर लाने का श्रेय आचार्य सिद्धसेन तथा मल्लवादी को है जिन्होंने सन्मति प्रकरण एवं नयचक्र आदि में इस पर विशद् विचारणा की है। इनके अतिरिक्त समन्तभद्र, अकलंक, आचार्य हरिभद्र, विद्यानन्द आदि जैन दार्शनिकों ने भी इसका विकास किया। ___ आनन्दघन की विवेचनाओं का आधार भी अनेकान्त-दृष्टि रही है। उनका 'अवधू नटनागर की बाजी' पद अनेकान्त-दृष्टि का सुन्दर उदाहरण है। इसी तरह उनकी 'षट्दर्शन जिन अंग भणीजे'-से प्रारम्भ होनेवाली नमिजिन-स्तवन भी अनेकान्तवाद की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण कृति है। इसमें उन्होंने षट्दर्शनों में समन्वय कर अनेकान्तवाद की स्थापना की
और षड्दर्शनों को समय-पुरुष (सिद्धान्त पुरुष) के विभिन्न अंग के रूप में प्रतिपादित किया।
वास्तव में, अनेकान्त दृष्टि एक ऐसी अनोखी पद्धति है जिसमें समग्र दर्शन समाहित हो जाते हैं, जैसे हाथी के पैर में अन्य पशुओं के पैर, माला में मोती और सागर में सरिताएं समा जाती हैं। इस सम्बन्ध में आनन्दघन का सुप्रसिद्ध निम्नलिखित पद द्रष्टव्य है :
जिनवर मां सघला दरसण छे, दरसण जिनवर भजना रे । सागरमां सघली तटनी सही, तटनी सागर भजना रे ॥२ १. आनन्दघन ग्रन्थावली, पद ५९ । २. वही, नमिजिन स्तवन ।