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आनन्दघन का रहस्यवाद आनन्दघन के रहस्यवाद में कहीं-कहीं शृंगारपरक रूपक भी दृष्टिगत होते हैं। एक पद में उन्होंने शुद्ध चेतनारूपी प्रिया के शृंगार धारण करने के वर्णन में प्रेम, साड़ी, महिंदी, अंजन, चूड़ियां, कंगन, उरबसी. माला, सिंदूर, आरसी आदि के अच्छे रूपक बांधे हैं।' आनन्दघन के पदों में केवल, दाम्पत्यमूलक रूपक ही नहीं, युद्ध के रूपक भी हैं। उन्होंने मोह को जीतने एवं उसके विरुद्ध संग्राम करने के लिए ल्हसकर (सेना), नंगी तलवार, दुसमण(शत्रु), मुनसफ (न्यायाधीश), दरगाह (पवित्र समाधि), मोर (मोड़-मुकुट), तेग (तलवार), टोप, सनाह (कवच), बाना, इकतारी चोरी (अंगरखा) आदि के रूपक बांधे हैं। ___ इसी तरह उनके पदों में आध्यात्मिक रूपक भी हैं। रूपक के द्वारा आत्म-शुद्धि की प्रक्रिया को बताते हुए वे कहते हैं :
मनसा प्याला प्रेम मसाला, ब्रह्म अगनि पर जाली। ___तन भाठी अवटाइ पीयै कस, जागै अनुभौ लाली ॥३ मन के भावना रूप चषक (प्याले) में प्रेम रूप स्वाध्याय का मसाला भर कर, ब्रह्म-आत्म तेज-तप रूप अग्नि को प्रज्ज्वलित कर, उस प्रेम-मसाले को शरीररूप भट्टी में औटा कर जो उस मसाले का सत्त्व (कस) पीते हैं, उन्हें अनुभव ज्ञान रूप लालिमा प्रकट हो जाती है। तात्पर्य यह है कि ध्यान-भावना, स्वाध्याय, तप-त्याग आदि द्वारा आत्मा की शुद्धि होती है
और शुद्ध होने पर अनुभव ज्ञान का प्रकाश हो जाता है। एक अन्य पद चौपड़ का सुन्दर रूपक है और उसके द्वारा चतुर्गति रूप संसार में चौपड़ का खेल खेला जा रहा है। आनन्दघन इसी चौपड़ के खेल का रहस्योद्घाटन करते हुए कहते हैं :
कुबुद्धि कूबरी कुटिल गति, सुबुधि राधिका नारी।
चोपरि खेले राधिका, जीते कुबिजा हारी ॥ कुबुद्धिरूप कुबड़ी वक्रगति वाली कुब्जा दासी और सुबुद्धि रूप राधिका नारी इस चौपड़ को खेल रही है। इसमें सुबुद्धि रूप राधिका की जय
१. आनन्दघन ग्रन्थावली, पद ८६ । २. वही, पद ५२ एवं ५३ । ३. वही, पद ५८। ४. वही, पद ५६ ।