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________________ ३६ से पराङ्गमुखवृत्ति वाले का नमस्कार 'नाम निक्षेप' नमस्कार है । आज्ञा मे सच्चा बहुमानभाव भावनिक्षेप से सच्चा नमस्कार है भावनमस्कार तथा प्राज्ञापालन का अध्यवसाय एकार्थक है। . नमन करना, परिणमित होना तथा तदाकार होना नमस्कार का भावार्थ है। श्री अरिहतो के विषय मे एकचित्त होना, उनके विषय मे ही मन स्थापित करना, उनका ही ध्यान तथा उनके विषय मे ही लेश्या भावनमस्कार है। भाव से नमना अर्थात् तद्र प होना तथा तद्प परिणमित होना अर्थात् त्रिकरणयोग से उनको हो समर्पित होना, तन, मन तथा धन को उनके ही कार्यों में प्रयुक्त करना है । उनके कार्य को करने में तीनो लोको का हित है । उस कार्य को अपना कार्य मानना साथ ही मन, वचन तथा काया के योग से उसी मे प्रयुक्त होना ही भावनमस्कार है। भावनमस्कार एवं प्राज्ञायोग 'नमो अरिहंतारण' के जाप से श्री अरिहतो की आज्ञापालन का अध्यवसाय जागृत होता है । श्री अरिहतो की आज्ञा अर्थात् षड्जीवनिकाय का हित हो ऐसा जीवन जीना । यही श्री अरिहतो के नमस्कार का फल है। आज्ञापालन के अध्यवसाय का अर्थ है समस्त जीवराशि पर स्नेह का परिणाम, समस्त जीवराशि के हित का अध्यवसाय तथा तदनुसारी जीवन । प्रभु की आज्ञा पर प्रेम उत्पन्न होने का प्रथम कारण आज्ञाभग़ की भीति है तथा आज्ञाभग से उत्पन्न होते दुष्ट विपाको का चिन्तन है। आज्ञाभग की भीति द्वारा प्रीति उत्पन्न होती है, प्रीति के वाद भक्ति जागती है तथा तत्पश्चात् आज्ञापालन की रुचि प्रकट होती है। इस रुचिपूर्वक जो ।
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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