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________________ पं जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व साहु शान्तिप्रसादजी, ब्र. चन्दाबाईजी, बैजनाथजी सरावगी, श्री जुगमंदरदास जैन, सेठ अमरचन्द जी कलकत्ता, श्री मिश्रीलाल जी काला, गजराजजी सरावगी, नथमलजी सेठी, रतनलालजी झांझरी आदि अनेक महानुभावों ने समय-समय पर मुख्तार जी का भार बटाया। 33 बौद्धिक वर्ग में श्री नाथूराम प्रेमी, बुद्धिलाल श्रावक और ए. एन. उपाध्ये उनके प्रमुख सहायक रहे। बाद में इस सूची में श्री यशपाल जी जैन तथा डॉ. प्रेमसागर और रतनलाल कटारिया का नाम भी जुड़ा। वीरसेवा मन्दिर के शोधकार्य में और अनेकान्त के सम्पादन में पं. परमानन्दजी और पं. हीरालाल जी का नाम भी उल्लेखनीय है। अनेकान्त के पुराने अंकों को, और संस्था के प्रकाशनों को देखकर ही आज मुख्तार साहब के योगदान का तथा उनके संकल्पों का अंदाजा लगाया जा सकता है। जैन साहित्य और इतिहास के क्षेत्र में उनका जो अवदान है वह सैकड़ों सालों तक उनके यश को जीवित रखने के लिये पर्याप्त है। मेरे अपने संस्मरण- मुझे इस बात का गौरव है कि अनेक बार मुझे मुख्तार साहब का सान्निध्य प्राप्त होता रहा है। ईसरी में पूज्य गुरुवर श्री गणेशप्रसाद जी वर्णी महाराज के चरणों में कई दिन तक मुख्तार जी के साथ रहने का अवसर मिला और वीर सेवा मन्दिर में अनेकों बार उनसे मिलने और चर्चा करने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ। मेरा उनसे पत्रव्यवहार भी होता रहा। ईसरी में जब हम मिले तब उनकी मानसिकता सामान्य नहीं थी । दुर्भाग्य से उनके तथा बाबू छोटेलालजी के बीच कुछ बातों को लेकर मतभेद और मन-मुटाव उत्पन्न हो गया था जिसके समाधान के लिये दोनों ही महानुभाव पूज्य बाबाजी के पास आये थे। उस समय मैंने प्रायः उन्हें सुना बाद में दिल्ली में जब मिलना हुआ तब मैंने उनकी कालजयी कविता "मेरी भावना" के बारे में कुछ विनय की। मेरे सुझाव थे कि "पर धन वनिता पर न लुभाऊं" केवल पुरुषों के लिये ही उपयुक्त है जब कि मेरी भावना स्त्री-पुरुष और छोटे-बड़े सभी पढ़ते हैं, अतः यह पंक्ति सुधारी जानी चाहिये। इसी प्रकार 'धर्मनिष्ठ होकर राजा भी न्याय प्रजा का किया करें" इस पंक्ति में राजा शब्द का अब कोई अर्थ नहीं रह गया है। 44 -
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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