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10 Pandit Jugal Kishor Mukhtar Yugvoer" Personality and Achievements हृदय से देशोन्नति रत रहा करें (2) किसी अन्य कृति में वे लिखते हैंचक्कर में विलासप्रियता में फंस मत भूलो अपना देश (3) एक रचना में धनिक संबोधन में धनिकों को देशोत्थान के हेतु प्रेरित करते हुए लिखा है'कल कारखाने खुलवाकर मेटो सब भारत के क्लेश' (4) एक कविता में उन्होंने लिखा है-करें देश उत्थान सभी मिल, फिर स्वराज्य मिलना क्या दूर (s) एक रचना में वे लिखते हैं-पैदा हों युगवीर देश में फिर क्यों दशा रहे दुःख पूर इत्यादि देश प्रेम के छंद उनकी कविताओं में विद्यमान हैं।
आज के इस भ्रष्ट भारत में नई पीढ़ी के युवकों को ऐसी रचना एवं कंठाग्र याद करना चाहिए, इस प्यारे भ्रष्ट भारत की भ्रष्टता में जैनियों का भी बड़ा महत्वपूर्ण योगदान हो रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय, पोस्टल विभाग उस काल में जितने अधिक विश्वासनीय और ईमानदार माने जाते थे, आज वे सब उतने ही भ्रष्ट हो गये हैं, पतन और गिरावट की चरण सीमाओं को लांघकर आगे की ओर बढ़ते जा रहे हैं। जैन समाज में दिखावट भाँडा प्रदर्शन
और आत्मख्याति की लालसा तो सीमातीत होती जा रही है। मुख्तार सा. गांधी जी के इतने अधिक भक्त थे कि जब उनकी पहली गिरफ्तारी हुई, तब मुख्तार सा. ने प्रतिज्ञा ली थी कि जब तक चरखा न कात लें, तब तक भोजन नहीं करेंगे। उस समय देश प्रेम का जो जुनून था, आज उसके सर्वथा विपरीत धारा बह रही है। उस समय लोग हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ जाते थे आज लोग घर भरने में प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, कुर्सियां समेटने में अपने को धन्य और सौभाग्यशाली मान रहे हैं।
यद्यपि मुखार सा. सन् 1907 से ही साहित्य सेवा में लग गये थे पर सन् 1914 के बाद तो वे 'गेही पैगह में रच्यों ज्यों जल तें भिन्न कमल हैं' सदृश हो गये थे। तत्कालीन प्रसिद्ध साप्ताहिक जैन पत्र 'जैन गजट' के वे संपादक बने, तब तो 'जैन गजट' को प्रसिद्धि समाज में तथा बुद्धि जीवियों में अत्यधिक उच्च श्रेणी तक पहुंच गई थी और अपने क्रान्तिकारी विचार से सोई हुई जैन समाज को झकझोर दिया था, उन्होंने सन् 1918 तक जैन गजट' का संपादन अबाधगति से किया स्व. पं. नाथूराम जी प्रेमी जो हिन्दी सत्साहित्य प्रकाशन के भीष्म पितामह माने जाते थे, उनकी कर्मठता और हिन्दी सत्साहित्य