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________________ 320 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer Personality and Achievements खा सकते। ये मुख्तार जी के अपने व्यक्तिगत विचार हैं, जिन्हें उन्होंने मूलाचार की उक्त गाथाओं से ग्रहण किया था।" दूसरे निबंध "क्या सभी कंदमूल अनंतकाम होते हैं, में मुख्तार जी ने अदरक, गाजर, मूली, आलू आदि जमीकंद के विषय में विचार-विमर्श करके अन्त में कहा है कि विद्वानों को कंदमूलादि की जाँच करके उसके नतीजे से सूचित करने को कहा है।" तीसरा लेख “अस्पृश्यता-निवारक आन्दोलन' शीर्षक से है। निबन्ध मुख्तार जी ने सन् १९२१ में लिखा था, जो जैन हितैषी के जुलाई १९२१ के अंक में प्रकाशित हुआ था। इस लेख की प्रेरणा लेखक को उस समय महात्मा गाँधी द्वारा चलाये जा रहे अस्पृश्यता विरोधी आन्दोलन से प्राप्त हुई थी। इसमे मुख्तार जी ने जैन धर्म की दृष्टि से अस्पृश्यता और स्पृश्यता पर विचार करके कहा था कि अछूतो पर अर्से से बहुत अन्याय और अत्याचार हो रहे हैं। इसलिए हमें अब उन सबका प्रायश्चित करना जरूरी है। चतुर्थ लेख 'देवगढ़ के मंदिर-मूर्तियों की दुर्दशा से सबधित है, जो दिसम्बर १९३० के अनेकान्त के अंक में प्रकाशित हुआ था। यह मुख्तार जी के निजी अनुभव पर आधारित है। यद्यपि बाद में तो इस तीर्थ की व्यवस्था और सुरक्षा में काफी सुधार आया किन्तु स्वतंत्रता के पूर्व देवों के गढ़ जैन सास्कृतिक दृष्टि से सर्वाधिक समृद्ध तीर्थ की जो दुर्दशा थी, उसे ही इस लेख मे वर्णित किया है। उन्होंने इस दुर्दशा का वर्णन दुःखी हृदय से करते हुए लिखा है कि इन करुण दृश्यों तथा अपमानित पूजा-स्थानों को देखकर हृदय में बार-बार दुःख की लहरें उठती थीं, रोना आता था, और उस दुःख से भरे हुए हृदय को लेकर ही मैं पर्वत से नीचे उतरा था।' पंचम निबंध "ऊँच-गोत्र का व्यवहार कहाँ है ! जो षट्खण्डागम के वेदना नामक चतुर्थ खण्ड के चौबीस अधिकारों में से पाँचवें 'पयदि' अधिकार पर आधारित है। यह लेख भी नवं. १९३८ के अनेकान्त में प्रकाशित हुआ था। उन्होंने इसमें उच्च गोत्र से संबंधित अनेक प्रश्न उपस्थित किये हैं।"
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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