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________________ पं जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व सातवें निबंध " मक्खन वाले का विज्ञापन" में पं. जी ने 'अनेकान्त' पत्र के माध्यम से जैननीति अर्थात् अनेकान्त नीति/स्याद्वाद नीति का सुगम वर्णन किया है, जो वस्तु तत्व को सप्तप्रकार से कथन कर, नय पद्धति से समझाकर सत्यमार्ग के दर्शन कराती है। पं. जी नय पद्धति की व्याख्या करते हुए इसी निबंध में पृ. 787 पर लिखते हैं " जिनेन्द्र देव की नय पद्धति अथवा न्याय पद्धति है और जो सारे जैन तत्वज्ञान की मूलधार एवं व्यवस्थापिका है, उसे जैन नीति कहते हैं।" पृ. 78 अमृतचन्द्राचार्य भी पुरुषार्थसिद्धपाय में श्लोक 225 में निर्देशित करते हैं - एकेनाकर्षन्ति श्लथयन्ती वस्तु-तत्वमितरेण । अन्तेन जयति जैनोनीतिर्मन्थान नेत्रमिव गोपी ॥ अर्थात् गोपी दही को मथते समय मथनिया की एक रस्सी को ढीली करती है और एक रस्सी को खींचती है, जैननीति भी वस्तु तत्व का कथन करने के लिए नय विवक्षा को अपनाती है, तभी वस्तु तत्त्व की यर्थाथता दृष्टिगोचर होती है। आचार्य विद्यासागर महाराज जैन गीता पृ. 212 पर अनेकान्त सूत्र 12 में यही बात कहते हैं 44 315 - हो एक ही पुरुष भानज तात भाई, देखा वही सुत किसी नय से दिखाई पै भ्रात तात् सुत औ सबका न होता, है वस्तु धर्म इस भाँति अशांति खोता ॥ अनेकान्त विरोधात्मक पद्धति नहीं अपितु समन्वय की सुरभि फैलाता 'जैनधर्म और दर्शन" में मुनिप्रमाणसागर पृ. 265 पर लिखते हैं - 44 'जहाँ 'भी' की अनुगूंज होती है वहाँ समन्वय इस प्रकार अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि पं. श्री जुगल किशोर जी मुख्तार निर्भीक और
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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