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________________ 296 16 17. Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements पंडित ठाकुरदास जी का वियोग श्री छोटेलाल जी का निधन इन निबन्धों में प्रथम निबन्ध है - "वैद्यजी का वियोग " । यहाँ श्री मुख्तार जी का वैद्यजी से तात्पर्य है - देहली के सुप्रसिद्ध राजवैद्य रसायनशास्त्री पं शीतलप्रसाद जी जिनका ३ सितम्बर ईसवी १९३० को स्वर्गवास हुआ। मुख्तार जी की दृष्टि में वे एक कुशल चिकित्सक सत्परामर्शक थे । उनके वियोग से निःसन्देह, जैन समाज को ही नहीं, किन्तु मानव समाज को एक बहुत बड़ी हानि पहुँची है। उन्होंने कतिपय रोगियों को जिन्हें डॉक्टरों ने ऑपरेशन आवश्यक बताया था, बिना किसी ऑपरेशन के अच्छा स्वस्थ कर डॉक्टरों को चकित कर दिया था। आप धार्मिक संस्थाओं को दान भी करते थे । समन्तभद्र आश्रम को आपने १०१ रुपयों और अपनी पुत्रवधू की ओर से ५० रुपये की सहायता प्रदान की थी। वे विद्वानो से मिलकर प्रसन्न होते थे। जैन शास्त्रों का आपने बहुत अध्ययन किया था और उनके आधार पर आप " अर्हत्प्रवचन वस्तुकोश" तैयार कर रहे थे। इसी बीच बायीं हथेली में फोड़ा हुआ और उसी की चिकित्सा मे उनके प्राण पखेरू उड़ गये। मुख्तार जी ने सहानुभूति और सवेदना प्रकट करते हुए लिखा है कि वैद्य जी को परलोक में सुख-शान्ति प्राप्त होवे | यह निबन्ध युगवीर निबन्धावली में पृष्ठ ६६१-६६२ पर प्रकाशित हुआ है। दूसरा निबन्ध है - 'ईसरी के सन्त' । युगवीर निबन्धावली पृष्ठ ६६३६६४ में इस सन्त का नाम श्रीमान् गणेशप्रसाद वर्णी लिखा गया है। इस सन्त के सन्दर्भ में भी मुख्तार जी लिखते हैं- "वर्णी जी के ईसरी निवास से ईसरी एक तीर्थस्थान के समान बना हुआ है। उनका आध्यात्मिक प्रवचन बड़ा ही धार्मिक और प्रभावक होता है। उनमें कषायो की मदता, हृदय की उदारता, समता, भद्रता, निर्वेदता, दयालुता आदि गुण अच्छे विकास को प्राप्त हुए हैं। बाहय में मुनि न होते हुए भी आप भाव से मुनि हैं अथवा चेलोपसृष्ट मुनि के
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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