SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 337
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 286 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements पं. कैलाशचन्द्र जी ने लिखा है - "दिगम्बर जैन समाज में सर्वप्रथम' 'क्रमबद्ध इतिहास' विषय की ओर पं. श्री नाथूराम प्रेमी तथा पण्डित श्री जुगल किशोर मुख्तार का ध्यान गया। इन दोनों आदरणीय विद्वानों ने अपने पुरुषार्थ और लगन के बल पर अनेक जैनाचार्यों और जैन ग्रन्थों के इतिवृत्तों को खोज कर जनता के सामने रखा। आज के जैन विद्वानों में से यदि किन्हीं को इतिहास के प्रति अभिरुचि है तो उसका श्रेय इन्हीं दोनों विद्वानों को है। कम से कम मेरी अभिरुचि तो इन्हीं के लेखों से प्रभावित होकर इस विषय की ओर आकृष्ट हुई है। पं. श्री कैलाशचन्द्र शास्त्री-जैन साहित्य का इतिहास पूर्व पीठिका (लेखक के दो शब्द, पृष्ठ 15) पण्डित जी ने अनेक ग्रन्थों का सम्पादन, अनुवाद और मौलिक सृजन किया है। वे धर्म, इतिहास और संस्कृति के जाने माने विद्वान हैं। उनके ग्रन्थ मनीषियों और साधारण जन - दोनों की बीच समान रूप से समादृत हैं। यही कारण है कि कवि ने मेरी भावना के ग्यारह पद्यों में अनेक आर्ष ग्रन्थों का सार भर दिया है। हम एक ओर रामायण, महाभारत, और गीता का सार प्राप्त करते हैं तो दूसरी ओर आचार्य कुन्दकुन्द, समन्तभद्र, पद्मनन्दि प्रभूति आचार्यों के वचनों का सार भी प्राप्त करने में अछूते नहीं रहते। पं श्री मुख्तार जी के भाष्य ग्रन्थों में दुरूहपदों की विश्लेषणात्मक व्याख्या, असंदिग्ध भाषा का प्रयोग, व्यंजनाओं का पूर्णतया स्पष्टीकरण, व्यंजना का आश्रय, औचित्य बोध, प्रेषणीयता उत्पन्न करना आदि सभी गुण पाये जाते हैं। पंडित जी के ग्रन्थों में गम्भीर अध्ययन और चिन्तन की स्पष्ट छाया है। पण्डित जी द्वारा प्रणीत निम्नलिखित भाष्य उपलब्ध हैं : 1. स्वयम्भू स्तोत्र भाष्य। 2. युक्त्यानुशासन भाष्य। 3. रत्नकरण्ड श्रावकाचार भाष्य (समीचीन धर्मशास्त्र) 4. देवागम - आप्तमीमांसा भाष्य। 5. अध्यात्मरहस्य भाष्य। 6. तत्त्वानुशासन भाष्य (ध्यानशास्त्र)
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy