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________________ 246 - Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements ग्रन्थ में पाया जाता है। आप कर्णाटक देश के निवासी थे। कन्नड़ भाषा में लिखे हुए पूज्यपादचरिते' तथा 'राजवलीकथे' नामक ग्रन्थों में आपके पिता का नाम 'माधवभट्ट' तथा माता का नाम 'श्रीदेवी' दिया है और आपको ब्राह्मणकुलोद्भव लिखा है। इसके सिवाय प्रसिद्ध व्याकरणकार पाणिनि ऋषि को आपका मातुल (मामा) भी बतलाया गया है, जो समयादिक दृष्टि से विश्वास किये जाने के योग्य नहीं है।" यहाँ ध्यान देने योग्य बात है कि मुख्तार जी ने उक्त ग्रन्थों की अन्य बातें तो स्वीकार कर ली, किन्तु पाणिनि के पूज्यपाद के मामा होने की बात स्वीकार नहीं की। इससे यह तथ्य सामने आता है कि प्रस्तावनालेखक ने प्राचीन ग्रन्थों में किये गये उल्लेखों को आँख मूंदकर स्वीकार नहीं किया, बल्कि उनके औचित्य की परीक्षा करने पर जो उल्लेख उचित प्रतीत नहीं हुआ उसे अस्वीकार्य भी घोषित किया है। इससे ग्रन्थसम्पादक की निष्पक्षता एवं प्रामाणिकता सिद्ध होती है। समाधितन्त्र चूँकि समाधितन्त्र प्रस्तावना का केन्द्रबिन्दु है, अत: मुख्तार जी ने इस ग्रन्थ के स्वरूप का उद्घाटन करने में विशेष परिश्रम किया है। जिन विविध द्वारों से मुख्तार जी ने ग्रन्थ के स्वरूप को उद्घाटित किया है वे इस प्रकार हैं1 ग्रन्थ के प्रकार, महत्व और सौन्दर्य का उन्मीलन 2. प्रतिपाद्य विषय के स्रोतों का निरीक्षण 3 ग्रन्थान्तरों के प्रभाव का अनुसन्धान 4. ग्रन्थान्तरों पर पड़े प्रभाव का अन्वेषण 5. प्रतिपाद्यविषय एवं प्रतिपादनशैली का विश्लेषण 6. ग्रन्थनाम एवं पद्यसंख्या का निर्णय 7. संस्कृतटीकाकार की पहचान ग्रन्थ के प्रकार, महत्त्व और सौन्दर्य का उन्मीलन वाङ्मयाचार्य मुख्तार जी ने प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकार, महत्त्व और सौन्दर्य का उन्मीलन निम्नलिखित शब्दों में किया है
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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