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________________ 241 पं जुगलकिसोर मुखतार "युगवीर" व्यतित्व एवं कृतित्व की योगिभक्ति, समन्तभद्र का रत्नकरण्डश्रावकाचार स्वयम्भूः स्तोत्र एवं युक्त्यनुशासन, प्रभाचन्द्र का तत्त्वार्थसूत्र, हेमचन्द्र की अन्ययोगव्यवच्छेदिका, धर्मचन्द्र का गौतमचरित, रत्ननन्दी का भद्रबाहुचरित्र, वीरसेन की जयधवला टीका, जिनसेन का हरिवंशपुराण, मुनि कल्याणकीर्ति का यशोधरचरित, विद्यानन्दी का सुदर्शनचरित, प्रभाचन्द्र का न्यायकुमुदचन्द्र एवं प्रमेयकमलमार्तण्ड, अकलङ्कदेव का तत्त्वार्थवार्तिक, अनन्तवीर्य का सिद्धविनिश्चय, वादिराजसूरि का न्यायविनिश्चयविवरण, लघु अनन्तवीर्य की प्रमेयरत्नमाला, गुणभद्र का उत्तरपुराण और मल्लेिषणप्रशस्ति का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इस प्रकार हम देखते हैं कि श्री मुख्तार सा. द्वारा किया गया प्रस्तुत संकलन अपनी अनेक विशेषताओं के कारण विद्वज्जनों का हृदयहार बन गया है। साथ ही शोधी-खोजी विद्वानों के लिये एक ही स्थान पर महत्त्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक शोध-सामग्री प्रस्तुत करता है। श्रोत्रेण श्रवणं तस्य वचसा कीर्तनं तथा। मनसा मननं तस्य महासाधनमुच्यते॥ कान से भगवान के नाम, गुण और लीलाओं का श्रवण, वाणी द्वारा उनका कीर्तन तथा मन के द्वरा उनका मनन इन तीनों को महान् साधन कहा गया है। -शिवपुराण स्वधर्ममाराधनमच्युतस्य। भगवान की पूजा ही स्वधर्म है। -भागवत (५१०२३) त्पयन्ते लोकृतापेन साधकः प्रायशो जनाः। परमाराधनं वद्धि पुरुषस्याखिलात्मनः। अच्छे पुरुष दूसरों के सन्ताप से सन्तप्त रहते हैं। यही उनके लिए परमात्मा की सर्वोच्च आराधना है। -भागवत (EUR) -
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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