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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements ग्रन्थ-योजना का उद्देश्य
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संस्कृति के अमरत्वार्थ एवम् उन्नयनार्थ साहित्य का अन्वेषण संरक्षण, अध्ययन, व तन्निहित ज्ञान राशि का विवरण अत्यावश्यक हैं। हमें खेद है कि हमारी समाज अपने ऐतिहासिक साक्ष्यों पुरालेखों और साहित्य के संरक्षण की दिशा में वर्षों तक सोयी रही, उस युग में पं नाथूराम प्रेमी पं. गोपालदास वरैया, ब्र. शीतलप्रसाद वेरिष्टर चम्पतराय के शिक्षा-प्रचार के अलावा कहीं कोई प्रकाश की किरणें दिखायी नहीं देती थी। उक्त समाजसेवी साहित्यजीवी, जीवन बलिदानी महाभागों की गणना में कनिष्ठिकाधिष्ठित मुख्तार सा. ने ग्रन्थों की परीक्षा करने हेतु, ग्रन्थोल्लिखित गाथाओं के मूल उत्स की खोज करते समय, असली और नकली की पहिचान विभिन्न ग्रन्थों में पाये जाने वाले प्रशिप्तांशों के निर्णय के लिये अनुभव किया कि यदि सभी ग्रन्थों के पद्य सानुक्रम एकत्र उपलब्ध हों तो पद्यों के मूलकर्ता का ज्ञान, उनके काल निर्णय में सहायता मिल सकती है ।
प्राच्य ग्रन्थों के अध्ययनकर्ता जानते हैं कि अनेक ग्रन्थों में एक सी गाथाएँ, श्लोक उपलब्ध होते हैं, किन्हीं ग्रन्थों में तो 'उक्तं च' करके उल्लेख मिलता है, परन्तु अनेक ग्रन्थों में तो पता ही नहीं चलता कि अमुक मूलकर्त्तृकृत है या अन्य ग्रन्थ से उद्धृत है। यदि अन्य ग्रन्थ से उद्धृत है तो किस ग्रन्थ का है, तब समीचीन निर्णय हेतु ऐसे सूचियाँ ही उपयोगी हुआ करती हैं। पण्डितपुंगव मुख्तार महानुभाव ने बहुश्रम साध्य प्रकृत वाक्य सूची का निर्माण ग्रन्थाध्येता, ग्रन्थ सम्पादक, अनुसन्धित्सुओं के उपकारार्थ किया।
सूची सुसंबद्ध, सुसंगत है और इसमें शुद्धता का ध्यान रखा गया है। परिशिष्टों में टीका-समागत उद्धरण पृथक् से समाहित कर इसकी उपयोगिता को वृद्धिंगत किया गया है। सूची में समागत पद्यों को, जो मुद्रित प्रतियों में और हस्त लि. ग्रंथों में अशुद्ध थे उन्हें भी शुद्ध करके रखा गया है। २५००० से अधिक पद्यों की सूची में, जिनमें से अनेक हस्तलिखित प्रतियों से तैयार की गयी, बहुत सम्भावना थी कि कुछ पद्यावाक्य छूट जायें, पर बहुत कम ही छूट सके, जिन्हें पुनर्जीच कर परिशिष्ट में जोड़ दिया गया इस प्रकार प्रमाणिकता,