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________________ पुरातन जैन वाक्य सूची : एक अध्ययन अरुण कुमार जैन, ब्यावर (राज.) बहुविधविधा पारावारीण, वाङ्मयाचार्य पं. जुगलकिशोर मुख्तार इतिहास एवम् जैन साहित्य के अन्वेषण पर्यवेक्षण, परीक्षण, के क्षेत्र में एक दैदीप्यमान नक्षत्र हैं। वे मानवतावादी कवि, सफल समीक्षक, तलस्पर्शी भाष्यकार, प्रखर तार्किक, सुतीक्ष्ण आलोचक, बहुश्रुत निबन्धकार, गहनगवेषक, और महान् अध्येता हैं। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन साहित्येतिहास की रचना एवम् साहित्य के परिशीलन में समर्पित कर दिया। स्वनामधन्य मुख्तार साहब कर्मठ व्यक्तित्व के धनी एक लौहपुरूष थे। उनके भागीरथ अध्यवसाय चंचुप्रवेशी बुद्धि के फलस्वरूप जैनाचार्यों के कालनिर्धारण के अनेक जटिल प्रश्न हल हुए, जैनाभासी अनेक ग्रन्थों की कलई खुली, काल के गाल में समाते अनेक ग्रन्थरत्न प्रकाश में आ सके। उनके लेखों और व्याख्यानों से समाज और धर्म के क्षेत्र में व्याप्त अनेक विसंगतियों। रूढ़ियों/मिथ्यामान्यताओं का निरसन हुआ! जैन वाड्मय की तत्कालीन दुर्दशा देखकर अपने आर्थिक लाभदायक मुख्तारी के पेशे को तिलाञ्जलि देकर जैन विद्या के अनुसन्धान परिशीलन के कंटकाकीर्ण मार्ग का वरण किया। वे चाहते तो अपने मुख्तारी कार्य से उस जमाने में प्रचुर धन एकत्र करके भौतिक सुख-साधनों के उत्तमोत्तम भोगों आस्वादन कर सकते थे, अपनी रईशी के बल पर समाज को अपनी अंगुलियों पर नचा सकते थे परन्तु तब यत्र-तत्र प्रकीर्ण-विकीर्ण दीमक-भोजन बनने को विवश बहुमूल्य साहित्य का समुद्धरण कौन करता? जैनत्व के नाम पर चल रही मिथ्या रूढ़ियों का भञ्जन कर कौन समाज को सत्पथ पर लाता? और कौन 'समन्तभद्र भारती' के वितान से 'अनेकान्त' की पताका विश्व-गगन में दोलायमान करता? उनका जन्म ही साहित्य और इतिहास के अनुसन्धान के लिये हुआ, अपनी गहन व्युत्पत्ति, वृहस्पति-सम प्रतिभा और अथक अभ्यास के बल पर
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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