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Pandit Juga! Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements
ग्रन्थ का उल्लेख नहीं हुआ है। दक्षिण प्रदेश के किसी शास्त्र-भंडार में इसकी कोई प्रति नहीं मिली। जहाँ धवल, जयधवल, महाधवल आदि ग्रन्थराज सुरक्षित रखने वाले मौजूद हों, वहाँ भद्रबाहु संहिता' का नाम तक न सुनाई पड़े यह बहुत बड़े आश्चर्य की बात है। ग्रन्थ का आकार : और विचारणीय तथ्य :
ग्रन्थ में तीन खण्ड हैं - (1) पूर्व (2) मध्यम (3) उत्तर।
श्लोक सख्या लगभग सात हजार। किन्तु ग्रन्थ के अन्तिम वक्तव्य 18 श्लोकों में ग्रन्थ के पांच खण्ड और श्लोक संख्या 12 हजार उल्लिखित है (श्लोक सं 2/पृ.) सामान्य विभाजन में खण्डों का विभाजन समुचित नहीं
विचारणीय-अन्तिम वक्तव्य अन्तिम खंड के अन्त में होना चाहिए था। परन्तु यहाँ पर तीसरे खड के अंत में दिया है। चौथे पांचवे खंडों का कुछ पता नहीं और न उनके संबध में इस विषय का कोई शब्द ही उल्लिखित है। ग्रन्थ में तीन खण्ड होने पर ही पर्व, मध्यम, उत्तर कहना ठीक होगा। पांच खण्ड होने पर नहीं। इस विभाजन में अनेक विसंगतियाँ है।
दूसरे खंड को उत्तर खंड' सूचित किया है। पृ.7 और खंड के अंत में मध्यम खण्ड।
2. विषय का विभाजन/विशेष नामकरण :
श्लोक 1 में दूसरे खंड का नाम 'ज्योतिष खण्ड' और तीसरे का 'निमित्त खंड' दिया है।
इससे यह स्पष्ट होता है कि ये दोनों विषय एक दूसरे से भिन्न हैं। किंतु दोनों अध्यायों को पढ़ने से ऐसा नहीं लगता। वस्तुतः तीसरे खंड में 'ऋषि पुत्रिका' और 'दीप' नाम के अध्याय ही ऐसे हैं जिनमें निमित्त का कथन है। शेष आठ अध्यायों में अन्य बातों का वर्णन है। इससे आप सोचिए कि इस खंड का नाम कहाँ तक सार्थक है।