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'मीन-संवाद बनाम मानवधर्म
डॉ. कमलेश कुमार जैन, वाराणसी
मानव-जीवन किंवा प्राणिमात्र के लिये वायु के पश्चात् जल का ही महत्त्व है। जल के अभाव में मानव-जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। अत: जल ही जीवन है, ऐसा कहा जाता है।
जल और मीन अर्थात् मछली का निकट का सम्बन्ध है। मछली जल के बिना नहीं रह सकती है और मनुष्य भी जल के बिना नहीं रह सकता है। अत: दोनों के लिये जल का विशेष महत्त्व है। मछली का जल से निकट का सम्बन्ध होने के कारण मनुष्य भी उससे जुड़ गया है। मछली के विविध नामों में उसका एक नाम है मीन।' इस मीन के नाम पर अनेक लोकोक्तियाँ प्रचलित हैं जिनमें, जल में मीन प्यासी, 'मीन-मेख निकालना', 'मीनकेतन' (कामदेव का नाम)', 'मीन भखा सो सब भखा, बचो न एकऊ मांस', 'मछली जैसा तड़फना','बडी मछली द्वारा छोटी मछली को निगलना' आदि प्रमुख हैं। ये सभी लोकोक्तियाँ या नाम मछली की किसी विशेषता की ओर संकेत करते हैं। ___ मछली एक अत्यन्त उपयोगी जलचर प्राण है। यह पानी में पाई जाने वाली गन्दगी को उदरस्थ कर किसी अपेक्षा से जल को स्वच्छ बनाता है। अन्य जलचरों की अपेक्षा जल में मछली सर्वाधिक और सर्वत्र पाई जाती है। जब से कुछ लोगों ने उसको उदरपूर्ति का साधन बनाया है तब से वे लोग उसके अकारण दुश्मन बन गये हैं। मछली एक अत्यन्त साधारण जलचर होने से मनुष्य का कुछ भी नुकसान नहीं करती है, अत: उसका वध करना उचित नहीं है। जहाँ तक उदरपूर्ति का प्रश्न है तो संसार में ऐसे अनेक खाद्य पदार्थ उपलब्ध हैं, जिनसे उदरपूर्ति की जा सकती है। फिर भी लोग अपनी जिह्वालिप्सा के कारण उसका वधकर अपने उदर की पूर्ति करते हैं, जिससे मनुष्य की अन्यायी प्रवृत्ति का ज्ञान होता है। चूंकि मछली दीन-हीन है, अतः मनुष्य