SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 161 प. जुगलकिशोर मुखार "युगवार" व्यक्तित्व एवं कृतित्व विवाह आदि कुरीतियों को समाप्त करने का प्रयास किया। अस्पृश्यता के उन्मूलन में गांधीजी का योगदान अविस्मरणीय है। देश से सत्य, उदारता, पुरुषार्थता, प्रण की दृढ़ता, समता आदि गौण होते जा रहे हैं तथा सभी अपने स्वार्थ में पड़े हुए हैं। सभी मानव बल पराक्रम से हीन होते जा रहे हैं फिर भी किसी को देश, धर्म, दुनियादारी की कोई खबर नहीं है। इसी में बालकृष्ण शर्मा नवीन ने "रश्मिरेखा" काव्य पुस्तक में "आज है होली का त्यौहार" कविता में कर्मपथ रुपी खाण्डे की धार पर चलने को कहा है उन्होंने लिखा है - "उनकी क्या होली दीवाली? उनके क्या त्यौहार? जिनने निज मस्तक पर ओढ़ा जन विप्लव का भार । कर्म पथ है खाण्डे की धार ॥" आज भी देश में दहेज प्रथा स्वार्थान्धता, सामाजिक भेदभाव पनप रहा है हम सबको मिल जुलकर इसका उन्मूलन करना है तथा देश को खुशहाल बनाना है। "ज्ञान गुलाल पास नहीं, श्रद्धा - रंग न समता रोली है। नहीं प्रेम पिचकारी कर में, केशर - शान्ति न घोली है। स्याद्वादी समृदंग बजे नहिं, नहीं मधुर रस बोली है। कैसे पागल बने हो चेतन। कहते "होली होली है।" कवि "युगवीर" जी ने "होली होली है" कविता में लिखा है ज्ञान, श्रद्धा, प्रेम, शान्ति, मधुरवाणी जब तक नहीं होगी तब तक चेतन प्राणी आध्यात्म रस का पान नहीं कर सकता। भगवान महावीर के सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, अस्तेय जैसे सिद्धांतों को जब तक मानव अपने हृदय में • नहीं लाता, उनका पालन नहीं करता, तब तक अध्यात्म को नहीं समझ सकता। और जब तक ध्यान रूपी अग्नि नहीं जलेगी, कर्मेन्द्रियों पर विजय प्राप्त नहीं होगी, पाप समाप्त नहीं होंगे, असत्य का त्याग नहीं करोगे, तब तक • सिद्ध "स्वरुप को प्राप्त नहीं कर सकते। इसलिए हम सभी को भगवान
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy