________________
154 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements
कवि ने लिखा है - गाय, घोड़े, हाथी आदि जानवरों में तो भेद होता है लेकिन शूद्र और ब्राह्मणी के संगम से भी जब मानव की उत्पत्ति होती है तो फिर उसमें भेद क्यों किया जाय । ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र, वैश्य, इनके व्यवहार में भेद जरुर होता है तथा वह अपना-अपना कार्य करते हैं लेकिन उन्हें ऊँचा-नीचा नहीं कहा जा सकता। क्योंकि सभी मानव समाज के अंग है सभी धर्म के पात्र हैं। शूद्र यदि तिरस्कृत होकर तथा दुःखी होकर अपना कार्य छोड़ देता है तो संसार में तथा समाज में क्या होगा। पंडित श्री मुख्तार जी ने कहा है कि कोई अछूत नहीं होता है अत: किसी भी जीव को तिरस्कृत नहीं करना चाहिए -
"गर्भवास औ" जन्म-समय में कौन नहीं अस्पृश्य हुआ? कौन मलों से भरा नहीं? किसने मलमूत्र न साफ किया? किसे अछूत जन्म से तब फिर कहना उचित बताते हो? तिरस्कार भंगी चमार का करते क्यों न लजाते हो?
इसी प्रकार आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने मूकमाटी में कहा है कि सभी मानवों में एक ही आत्मा का वास है, एक ही जैसा खून है, फिर जातिगत भेदभाव क्यों? आचार्य विद्यासागर जी ने जातिगत भेदभाव संबंधी तत्त्वों को निरुत्साहित करते हुए कहा है कि जिसके आचरण अच्छे हैं तथा जो उच्चकर्म करता है वही उच्च जाति का है तथा उन्होंने आचरण को ही प्रमुख माना है और कहा है -
"गात की हो या जात की, एक ही बात है, हममें और माटी में समता सदृशता है. वर्ण का आशय न रंग से है न ही अंग से वरन् चालचरण ढंग से है।"