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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements
"युगवीर" जी ने बुरे विचारों का त्याग करके उदार बनने, सदैव ही प्रसन्नचित्त होकर तत्त्व की बातो का चिंतन करने तथा अपने मन में सुखदुःख के समय धैर्य धारण करके राग, द्वेष, भय, इन्द्रिय, मोह, कषाय आदि पर विजय प्राप्त करने की बात कही है.
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तज, एकान्त-कदाग्रह- दुर्गुण, बनो उदार विशेष रह प्रसन्नचित सदा, करो तुम मनन तत्व उपदेश ॥ जीतो राग-द्वेष, भय - इन्द्रिय-मोह कषाय अशेष धरो धैर्य, समचित्त रहो औ, सुख-दुख में सविशेष ॥
कवि मुख्तार जी ने अपनी लोकप्रसिद्ध कविता मेरी भावना में भी इसी ओर इंगित किया है
"जिसने राग-द्वेष- कामादिक जीते, सब जग जान लिया। सब जीवों को मोक्ष मार्ग का निस्पृह हो उपदेश दिया । बुद्ध, वीर, जिन, हरि, हर, ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो, भक्तिभाव से प्रेरित हो यह चित्त उसी में लीन रहो।"
महावीर संदेश नामक कविता में पं श्री मुख्तार जी ने अहंकार, अपनेपन, तृष्णाभाव जो अवनति की ओर ले जाने वाला है उसका त्याग करके तपस्या तथा संयम में लीन होने की बात कही है। वास्तव में जैन साहित्य अहंभाव, अपनेपन, तृष्णा को समस्त विपदाओं का कारण मानता है। अतः इनको त्यागने का उपदेश सर्वत्र मिलता है। इन सबका त्याग करने से ही अपना तथा सभी का कल्याण होगा।
" हो सबका कल्याण भावना ऐसी रहे हमेश, दया - लोक सेवा -रत चित हो और न कुछ आदेश । इस पर चलने से ही होगा विकसित स्वात्म-प्रदेश, आतम - ज्योति जगेगी ऐसे जैसे उदित दिनेश । "
तथा अन्य साहित्य में भी सर्वकल्याण की भावना दृष्टिगोचर होती