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पं जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
अब नहीं छुयेंगे, ऐसो कहत है ।
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देखो जी काका ये वीर बनत है '
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सरस्वती के वरद पुत्र ने लेखन, सम्पादन और कवित्व प्रहायन द्वारा माँ भारती का भण्डार समृद्ध किया है। कविता भावों की विशेष उदीपिका होने के कारण मानव को अभीष्ट कार्य में प्रवृत्त करने का सबसे अभीष्ट साधन है। साधारण जनता के हृदय तक दर्शन और धर्म के गूढ़ तथ्यों को पहुँचाने के लिये कविता का सहारा कवि द्वारा लिया गया है।
श्री मुख्तार साहब की काव्य रचनाओं का संग्रह 'युग भारती' के नाम से प्रसिद्ध है । 'युगवीर' की कविता भारती का श्रृंगार है, इसने माधुर्य का मधुर निवेश, प्रसाद की स्निग्धता, पदों की सरस शय्या, अर्थ का सौष्ठव, व अलंकारों का मंजुल प्रयोग पाया जाता है। कवि 'युगवीर' की सबसे प्रसिद्ध मौलिक रचना 'मेरी भावना ' है । यह एक राष्ट्रीय कविता है । इस संग्रह के सम्बोधन खण्ड में छह कवितायें हैं ।
1. जैन सम्बोधन 4 विधवा सम्बोधन
2 समाज सम्बोधन
5 अज सम्बोधन |
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3. वर सम्बोधन
सर्वप्रथम जैन सम्बोधन कविता की समीक्षा में आपने नैतिक पतन पर दृष्टिपात करने हुये अनैतिकता के दुष्परिणामों से तिरोहित होते हुये जैनत्व के लक्षणों को चिन्हित किया है।
" मद्य मांस-मधु त्यागः, सहोदुम्बर पंचकैः । अष्टावेते गृहस्थाना मुक्ता, मूल गुणा श्रुते ॥"
अर्थात् पंच उदुम्बर फल और तीन मकार का त्यागी ही जैन कहलाता । मुख्तार जी ने जैनत्व के विषय में 'युबवीर भारती' में लिखा है -
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छोड़ दो संकीर्णता, समुदारता धारण करो । पूर्वजों का स्मरण कर कर्त्तव्य का पालन करो ॥ आत्म बल पर जैन वीरों, हो खड़े बढ़ते चलो। हो न ले उद्धार जब तक, युग प्रताप बने रहो ॥