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प जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
137 नैवेद्य, दीप, धूप आदि द्रव्य मुझे शुद्ध प्रतीत नहीं होते, अत: मेरा चित्त आन्दोलित हैं कि मैं किस प्रकार इन अष्ट द्रव्यों से आपकी पूजा करुं। इतना ही नहीं कवि अपने आराध्य से निवेदन करता है-आप क्षुधा, तृषा आदि अष्टादश दोषों से रहित हैं, अत: कोई भी द्रव्य आपको वांछनीय नहीं है फिर मेरी यह पूजा विधि किस प्रकार आपको स्वीकृत हो सकेगी। कवि ने हिन्दी में 'मेरी द्रव्य पूजा' रची है। जैन आदर्श कविता १० अनुष्टप छन्दों में रचित है। इन्हीं अर्थों की हिन्दी में भी जैनी कौन नामक कविता है। दोनों प्रसाद गुणी है राग-द्वेषाऽवशी जैनों, जैनों मोह पाराङ्मुखः। स्वात्मध्यानोन्मुखो जैनो जैनो रोष-निवर्जितः॥६॥ युगवीर जी की संस्कृत कविताएं भी कोमल, मधुर और प्रसाद गुणी है। शब्द सौषव, पद विन्यास उत्तम है। कम शब्दों में अधिक भाव हैं। अनुवाद छटायुक्त संस्कृत पद्य हैं निस्सन्देह संस्कृत में भी कवि की अबाधगति प्रतीत होती है।'
'युगवीर भारती' में हिन्दी कविताएं पांच खण्डों में विभक्त हैं । उपासना खण्ड में भजन, गीत एव सस्कृत व्रतों में निबद्ध कविताएं हैं। गीतों का भाव सौन्दर्य महत्वपूर्ण है। वीरवाणी' शीर्षक कविता में वीरवाणी को 'अखिल जगतारन को जब यान' कहकर सुधा के समान सुखदायक और संसार समुद्र के पार होने के लिए जब यान के तुल्य बताया है वीरवाणी सभी के लिए कल्याणकारी है। 'परम उपासक कौन' कविता में मन की गूढ़ और विविध दशाओं का समाधान करते हुए तीतरागता को ही उपास्य माना है चंचल मन जब तक विजय-सुख की ओर कषाय के अधीन रहता है, तब तक उसकी चंचलता उत्तरोत्तर वृद्धिगत होती जाती है, पर जब संयम का अंकुश लगा दिया जाता है तो अनादिकाल से इन्द्रियों के विषयों की ओर दौड़ने वाला मन भी अधीन हो जाता है। इसी कारण कवि ने राग द्वेष विजयी प्रभु को उपास्य बताया है। 'सिद्धि सोपान' कविता पूज्यपाद की "सिद्धभक्ति"का पद्यानुवाद है। इसमें सिद्धों की भक्ति का स्वरुप चर्चित है। सिद्धिभक्ति ही श्रेयोमार्ग है। सिद्धि प्राप्ति का सोपान 'मेरी द्रव्य पूजा में कवि ने अपनी संस्कृत मदीया द्रव्य पूजा' का हिन्दी रुपान्तरण किया है। इसमें कवि ने द्रव्य पूजा के स्थान पर 'भावपूजा' को ही स्वीकार कर महत्व दिया है।