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युगवीर भारती की समीक्षा
डॉ. प्रेमचन्द्र रांवका, जयपुर
कविता मानव की उच्चतम अनुभूति की अभिव्यक्ति है। यह वह साधना है, जिसके द्वारा शेष सृष्टि के साथ मनुष्य के रागात्मक सम्बन्ध की रक्षा और निर्वाह होता है। वस्तुतः कविता हमारे मनोभावों को उच्छवसित करती है और जीवन में एक नया प्राण डाल देती है। वह मनुष्य को शोभन वस्तुओं में अनुरक्त और कुत्सित वस्तुओं से विरक्त करती है। कविता जीवन की सुन्दरतम व्याख्या है। यह भावों की विशेष उद्बोधिका होने के कारण मानव को अभीष्ट कार्य मे प्रवृत्त करने का सबसे अभीष्ट साधन है। यह मानव हृदय को सद्यः प्रभावित करती है। दर्शन तथा धर्म के गूढ़ तथ्यों को जन-मन तक पहुंचाने का प्रकृष्ट सम्बल है ।
यह सत्य है कि जहां, साहित्य, कविता एवं इतिहास का चिन्तन नहीं होता वहां निर्जीविता का साम्राज्य प्रतिष्ठित हो जाता है। किसी भी समाज या धर्म की सबसे बड़ी पूंजी वाड्मय की होती है। जिस समाज का कोष वाड्मय से रिक्त रहता है । वह समाज मृतः प्राय है। उसका अस्तित्व अधिक समय तक नहीं रह सकता। जैन धर्म-दर्शन का साहित्य भारतीय वाड्मय का अपरिहार्य और महत्वपूर्ण अंग है। जैनाचार्यों सन्तों विद्वानों श्रावक-श्राविकाओं ने जैन साहित्य के संरक्षण, सम्वर्द्धन, एवं सम्पोषण में महती भूमिका निभायी है । जैन मन्दिरों, उपासरों में विद्यमान विपुल ग्रन्थ भण्डार जो विविध भाषा एवं विषयक उपलब्ध होता है इसका प्रमाण है।
इसी श्रृंखला में स्वतंत्रता प्राप्ति पूर्व स्वनाम धन्य पं. श्री जुगलकिशोर जी मुख्तार साहित्याकाश के देदीप्यमान नक्षत्र हुये हैं, जिन्होंने जैन वाड्मय के संरक्षण एवं सम्वर्द्धन में महान योग दिया। उनके जीवन काल का अधिकंश भाग साहित्य, कला एवं पुरातत्व के अध्ययन एवं अन्वेषण में व्यतीत हुआ । साहित्य देवता के अर्चन में वे रत रहे। जिनके जन्म से वाड्मय के भण्डार की