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130 Pandit Jugel Kishor Mukhtar "Yugvoer" Personality and Achievements "मैत्री प्रमोद कारुण्यमाध्यस्थानि सत्वगुणाधिकक्लिश्यमानाविनेयेषु।"
(अध्याय ७/११) इसी आशय का सूत्र आ अमितगति ने भी लिखा है यथा - सत्त्वेषु मैत्री गुणिषु प्रमोदं क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वं । माध्यस्थभावो विपरीतदृष्टौ सदा विधेयो पुरुषा शिवाय ॥
तथा इसी भाव को व्यक्त करने वाला अन्य श्लोक इन्हीं आचार्य द्वारा रचित भावना-द्वात्रिंशतिका या सामायिक पाठ में प्रथम ही पाया जाता है।
सिद्धान्ताचार्य पं. जुगलकिशोर आगम के तलस्पर्शी विद्वान् थे। अभीक्ष्णज्ञानोपयोग उनका प्रेय था, श्रेय था। संस्कृत भाषा के ज्ञाता होने पर भी लोक-प्रचलित सरल भाषा के रुप में विचारों की अभिव्यक्ति ही उनका ध्येय था। उन्होंने उपरोक्त आगम के सारभूत भावना तत्व को 'मेरी भावना' मे अति स्वाभाविक रुप में संजोया है। प्रस्तुत हैं निम्न पक्तियाँ,
"मैत्री भाव जगत में मेरी सब जीवों से नित्य रहे। दीन-दुखी जीवों पर मेरे ठर से करुणा-स्रोत बहे ॥ दुर्जन क्रूर कुमार्गरतों पर क्षोभ नहीं मुझको आवे। साम्यभाव रक्खू मैं उन पर ऐसी परिणति हो जावे॥" "गुणी जनों को देख हृदय में मेरी प्रेम उमड़ आवे।"
यद्यपि इसी अर्थ की सूचक अन्य भी भावनायें होंगे, किन्तु मुख्तार सा. की उपरोक्त पंक्तियों के सामने कोई भी लोकप्रिय न हो सकीं।
'मेरी भावना' में सातवां छन्द निम्नलिखित है, जिसमें मानवपुरुषार्थ का उच्च आदर्श प्रस्तुत किया गया है।
कोई बुरा कहो या अच्छा लक्ष्मी आवे या जावे। लाखों वर्षों तक जीऊँ या मृत्यु आज ही आ जावे॥ अथवा कोई कैसा भी भय या लालच देने आवे। तो भी न्याय मार्ग से मेरा कभी न पद डिगने पावे।