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* যৰি সুখৰ “মুখী”কি হল স্মৃতি। उनके व्यक्तित्व में प्रतिबिम्बित होते हैं। वे चारों अनुयोगों के अधिकारी विद्वान् थे। संस्कृत एवं हिन्दी दोनों भाषाओं पर उनका अधिकार था। स्वयं के स्वाध्याय का प्रकृष्ट फल उन्हें प्राप्त हुआ था वेि अथकित अद्भुत जीवट के धनी थे। कठिनतम दुख के अवसरों पर वे अडिग रहे। परिवार के पूर्ण वियोग में भी उन्होंने सरस्वती माँ की सेवा की, इच्छा-शक्ति निरन्तर जागृत रखी। इसी हेतु वे दीर्घायु का जीवन जीकर अपने अस्तित्व को सार्थक कर गये।
युगवीर जी का व्यक्तित्व मूलरूप से कवि के रूप में प्रस्फुटित हुआ है। डॉ. नेमिचन्द शास्त्री ज्योतिषाचार्य के शब्दों में "युगवीर की कविता माँ भारती का श्रृंगार" है। उनकी कविताओं का संग्रह युगभारती शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। उसमें संस्कृत तथा हिन्दी दोनों ही भाषाओं के कविताये सम्मिलित हैं। मेरी भावना -
प. जुगलकिशोर जी की अमर विख्यात और मौलिक काव्य रचना मेरी भावना है। छन्द चाल अथवा ज्ञानोदय छन्द में रचित मात्र ग्यारह छन्दों की यह लघुकाय भावना अत्यन्त गम्भीर अर्थ को समाहित किए हुए गागर में सागर के समान है। यह अन्तस का सीधे स्पर्श कर स्थायी प्रभाव छोड़ती है। इस पर बिहारी विषयक निमन दोहा चरितार्थ हो रहा है।
सतसइया के दोहरे ज्यों नावक के तीर ।
देखत में छोटे लगे घाव करें गम्भीर ॥ मेरी भावना हृदय की गहराइयों में जाकर व्याप्त अज्ञान अंधकार का हरण कर ज्ञान प्रकाश को स्थायी बनाने में समर्थ है। प्रस्तुत काव्य को पठन करने से मुझे यह अनुभव होता है, मानो कवि ने सोद्देश्य इस कृति में अनेक आर्ष ग्रन्थों के सार को ही समायोजित कर दिया है। मानव जीवन के विभिन्न निर्बल पावों जैसे मिथ्यात्व, अज्ञान असंयम, असहिष्णुता, स्वार्थ, सहअस्तित्व, अनभिज्ञता अर्थात, दु:ख-दारिद्र, दयनीय स्थितियाँ, पंच पाप प्रवृत्ति, क्रोधमान-माया-लोभ, वैर, दैहिक-दैविक भौतिक संताप आदि की स्थिति में एक समाधान रूप संक्षेप मूल मन्त्र आम जनता को सरल भाषा में उन्होंने प्रस्तुत