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120 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "yugveer" Personality and Achievements दिया है, और आप में जड़मूल से बदलने की संभावना को जन्म दे दिया
डॉ. नेमीचन्द जैन 9. मेरी भावना का उत्तरवर्ती प्रभाव -
कवि 'युगवीर' की यह कालजयी रचना इतनी अधिक लोकप्रिय हुई कि जन-जन का हृदय-हार बन गई। आवालवृद्धनर-नारी ने इसे जाति-धर्म सम्प्रदाय समाज-वर्ग और वर्ण भेद से ऊपर उठकर अपनाया। श्रद्धालुओं/ भक्तों ने इसे स्तुतिरूप में स्वीकार किया, यह पूजा स्थलों में प्रभुचरणों में बैठकर पढ़ी जाने लगी। विद्यालयों में इसे दैनिक प्रार्थना के रूप में अपनाया गया। मैंने स्वयं इसे दरियागंज, देहली के एक विद्यालय में छात्रों द्वारा प्रार्थना के रूप में सन् 1953 में सुना है। इस प्रकार इसका आदर कुटियों से लेकर महलों तक और गरीबों-अमीरों सभी के यहां समान रूप से होने लगा। यह मेरी/व्यक्ति की न होकर सबकी है और सबके लिए है जिसे कभी भी, कितनी भी और कितने बार भी पढ़ी जा सकती है।
दूसरे, मेरी भावना की सुन्दरता और लोकप्रियता का प्रभाव कवियों पर भी पड़ा। कुछ कवियों ने मेरी भावना की तर्ज/भाव भूमि पर भावनाएं और कीर्तन लिखे। फिलहाल दो "समाधिभावनाएं" मेरी सामने हैं - "दिन रात मेरे स्वामी मैं भावना ये भाऊँ . ..... शिवराम" प्रार्थना यह जीवन सफल बनाऊँ हे भगवन ! समय हो ऐसा जब प्राण तन से निकले .. .. ... नवकार मत्र जपते, मम प्राण तन से निकले इन भावनाओं की विषय वस्तु तो भिन्न है, पर शीर्षकों पर मेरी भावना का प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है।
एक अन्य रचना का शीर्षक तो "मेरी भावना" ही है तथा पृष्ठ भूमि भी वही है ,जिसके प्रारंम्भिक शब्द हैं "भावना दिन-रात मेरी, सब सुखी संसार हो" इत्यादि।
श्री मनोहरलाल जी वर्णी सहजानन्द' जी महाराज के "आत्मकीर्तन" पर भी मेरी भावना के प्रभाव को देखा जा सकता है।