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पं. जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एव कृतित्व
अथवा कोई कैसा भी भय या लालच देने आवे तो भी न्याय मार्ग से मेरा कभी न पग डिगने पावे। आगे कवि दृढ़ता के साथ कहता है।। होकर सुख में मग्न न फूलें दुख में कभी न घबरावे पर्वत नदी शमशान भयानक अटवीं से नहिं भय खावे। रहे अड़ोल अकम्प निरन्तर यह मन दृढ़तर बन जावे इष्ट वियोग अनिष्ट योग में सहनशीलता दिखलावे ॥
अन्तिम तीन पद्यों में कवि ने मंगल कामना प्रकट करते हुए कहा है कि संसार के सभी प्राणी सुखी रहें, वैर-विरोध-अभिमान से दूर रहें, घर-घर में धर्म की चर्चाएं हो, कहीं भी कुकृत्य नहीं रहे, मनुष्य जन्म का सर्व श्रेष्ठ फल यही माने कि ज्ञान और आचरण को उन्नत बनायें।
संसार में किसी प्रकार का भय नहीं हो, समय पर वर्षा हो अर्थात् अतिवृष्टि या अनावृष्टि नहीं हो, सरकार का धर्म हो कि जनता के प्रति न्यायवान् हो, सभी निरोग और स्वस्थ रहे, अकाल की छाया नहीं पड़े, सम्पूर्ण जनता शांति से रहे तथा जगत में अहिंसा धर्म का प्रसार होकर सभी का कल्याण हो।
यह मंगल कामना ठीक उसी प्रकार से प्रकट की गयी है जैसी कि पूजा के अंत में शान्ति पाठ में की गयी है।
अन्तिम पध में उपहार स्वरूप भावना प्रकट करते हुए महामनीषी कविवर युगवीर जी कहते हैं कि संसार में सभी आपस में प्रेम से रहे, मोह को शत्रु मान कर उससे दूर रहें, किसी को अप्रिय और कठोर शब्द नहीं कहें, सभी राष्ट्र की उन्नति में लगे,तथा वस्तु के वास्तविक स्वरुप को अर्थात् संसार की असारता को विचार करते हुए जो भी विपत्ति आवे उसे हंसते-हंसते सहन करते रहे।
इस प्रकार हम देखते हैं कि मेरी भावना केवल मुख्तार साहब की भावना की ही घोतक नहीं है बल्कि समूचे पाठकों के हृदय के भावों को