________________
Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements
इनके अनेक शिष्य हुए, जिनमें आचार्य सूर्यसागर जी बहुश्रुत विद्वान थे। आचार्य सूर्यसागर जी का जन्म कार्तिक शुक्ला नवमी वि.स. 1940 (सन् 1883) मे प्रेमसर, जिला ग्वालियर (म.प्र.) में हुआ था। वि.स. 1981 (सन् 1924) मे ऐलक दीक्षा इन्दौर में, तत्पश्चात 51 दिन बाद मुनि दीक्षा हाट पिपल्या जिला मालवा (म.प्र.) मे आचार्य शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) से प्राप्त की। दिगम्बर जैन परम्परा से जैन साहित्य को सुदृढ एव स्थायी बना सके हैं। आचार्य सूर्यसागर जी उनमें से एक थे। उन्होंने लगभग 35 ग्रन्थो का सकलन/प्रणयन किया और समाज ने उन्हें प्रकाशित कराया। 'सयमप्रकाश' उनका अद्वितीय वृहत ग्रन्थ है, जिसके दो भागो (दस किरणो) मे श्रमण और श्रावक के कर्तव्यो का विस्तार से विवेचन है। सयमप्रकाश सचमुच मे सयम का प्रकाश करने वाला है, चाहे श्रावक का सयम हो चाहे श्रमण का। वि.स. 2001 (14 जुलाई 1952) में डालमिया नगर (बिहार) में उनका समाधिमरण हुआ।
परम्परा के तीसरे आचार्य 108 श्री विजयसागर जी महाराज का जन्म वि.स. 1938 माघ सुदी 8 गुरूवार (सन् 1881) मे सिरोली (म.प्र.) मे हुआ था। इन्होने इटावा (उ.प्र.) में क्षुल्लक दीक्षा एव मथुरा (उ.प्र.) मे ऐलक दीक्षा ग्रहण की थी तथा मारोठ (राजस्थान) मे आचार्य श्री सूर्यसागर जी से मुनि दीक्षा ली थी। आचार्य सूर्यसागर जी का आचार्य पद पूज्य मुनि श्री विजयसागर महाराज को लश्कर में दिया गया था। आचार्य विजयसागर जी महाराज परम तपस्वी वचनसिद्ध आचार्य थे। कहा जाता है कि एक गाव मे खारे पानी का कुआ था, लोगो ने आचार्य श्री से कहा कि हम सभी ग्रामवासियों को खारा पानी पीना पड़ता है, आचार्य श्री ने सहज रूप से कहा, "देखो पानी खारा नहीं मीठा है", उसी समय कुछ लोग कुए पर गये और आश्चर्य पानी खारा नहीं मीठा था। आपके ऊपर उपसर्ग आये, जिन्हे आपने शान्तीभाव से सहा, आपका समाधि मरण वि•स• 2019 (20 दिसम्बर 1962) मे मुरार (ग्वालियर) मे हुआ।
__ आचार्य विजयसागर जी के शिष्यो में आचार्य विमलसागर जी सुयोग्य शिष्य हुए। आचार्य विमल सागर जी का जन्म पौष बदी शुक्ला द्वितीया वि•स• 1948 (सन् 1891) में ग्राम माहिनो, जिला मण्डला (म.प्र.) में हुआ था। आपने क्षुल्लक दीक्षा एव मुनि दीक्षा (वि०स० 2000 मे) आचार्य श्री विजयसागर जी महाराज से ग्रहण की। आप प्रतिभाशाली आचार्य थे। आपके सदुपदेश से अनेकों जिनालयों का निर्माण और जिनबिम्बो की प्रतिष्ठा हुई। आपके सान्निध्य मे अनेक पचकल्याणक प्रतिष्ठाए व गजरथ महोत्सव सम्पन्न हुए। भिण्ड नगर को आपकी विशेष देन है। आपका जन्म मोहना (म.प्र.) मे तथा पालन-पोषण पीरोठ मे हआ. अत आप पीरोठवाले महाराज' साथ ही भिण्ड नगर में अनेक जिनबिम्बों की स्थापना कराने के कारण 'भिण्ड वाले महाराज' के नाम से विख्यात रहे हैं। आचार्य विजयसागर जी ने अपना आचार्य पद विमलसागर जी महाराज (भिण्ड) को सन् 1973 मे हाडौती जिले में दिया।