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पं जुगलकिशोर मुख्तार "बुमवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
आज्ञा मांगी तो मुख्तार सा. ने स्पष्टरूप से मना कर दिया। उनका कहना था कि फाइलों को यहीं देख लीजिए, और यदि दिल्ली ले जाना आवश्यक हो तो मैं स्वयं इन्हें लेकर दिल्ली चलूंगा, वे स्वयं उन फाइलों को लेकर दिल्ली गये और मित्रों का कार्य हो जाने पर उन्हें वापिस लौटा लाए ।
(5) मृदुभाषी और व्यवहार कुशल- निःसन्देह मुख्तार सा. का व्यक्तित्व उदार था, जहां से ज्ञान की जलराशि प्रवाहित होती थी जिसके स्पर्श मात्र से पण्डितों के हृदय शीतल हो जाते थे। पूज्य गणेशप्रसाद वर्णी, पंडित नाथूराम प्रेमी, बाबू सूरजभानु वकील, ब्र. पं. चन्द्राबाई जी आरा, बाबू राज कृष्ण जी दिल्ली, साहू शान्तिप्रसाद जी आदि सभी आपकी ज्ञान साधना से प्रभावित थे, तथा आपकी व्यवहार कुशलता एवं मृदुसंभाषण की प्रशंसा करते थे ।
निष्कर्ष - पं. जुगल किशोर मुख्तार सा. का व्यक्तित्व एक साथ कई विधावाओं से सम्पृक्त था । उन जैसा परिश्रमी और निष्काम सरस्वती की उपासना करने वाला क्वचित् कदाचित् ही दृष्टिगोचर होता है ।
मुख्तार सा. ने कई विधाओं में कार्य किया, जैसे - कविता, निबंध, भाष्य, वैयक्तिक निबंध, संस्मरण, प्रस्तावनाएं लिखना, आचार्य और कवियों की तिथियां निर्धारित करना आदि। ये कार्य एक व्यक्ति द्वारा एक जन्म में शायद ही संभव हों, लेकिन मुख्तार साहब ने ये सब कार्य किये।
ग्रन्थपाल ही एक ऐसा प्राणी है जो भूत, वर्तमान, एवं भविष्य में उत्पन्न होने वाले ज्ञान से, विषयों से जूझता है, उन्हें ग्रन्थालय में व्यवस्थित करता है, पाठक को उसके अभीष्ट विषय पर ज्ञान उपलब्ध कराता है। पुस्तक उपलब्ध करता है।
अतः मुख्तार सा. के अनेक रूपों में श्रेष्ठ ग्रन्थपाल का रूप भी सामने आता है। इसके साथ यदि उन्हें एक श्रेष्ठ ग्रंथपाल भी कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी और न मुख्तार सा. का अनादर ही होगा, बल्कि उनके सम्मान में एक और कड़ी जुड़ जायगी। अस्तु वे एक श्रेष्ठ ग्रन्थपाल भी थे।