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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements
सा. जैसी निर्भीक, तथ्यपरक, कालजयी दृष्टि के आलोक में सांस्कृतिक स्वरूप को देखे जाने की आज सर्वाधिक आवश्यकता है। उनके द्वारा संचालित 'अनेकान्त' पत्र उसका जीवन्त प्रमाण है।
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पुरुषार्थ और साहस - श्रमण सांस्कृतिक परम्परानुसार मुख्तार सा. को जिनशासन के प्रभावक आचार्यों में जिस महिमामण्डित आचार्य ने सर्वाधिक प्रभावित किया था, वे थे महान् तार्किक आचार्य समन्तभद्र । आचार्य समन्तभद्र की कृतियों पर तथ्य और आगम के परिप्रेक्ष्य में जिस गम्भीरता के साथ उन्होंने चिन्तन-मनन और व्याख्यायें प्रस्तुत की है वह आज भी अनुसन्धितषुओं के लिए प्रेरक और अनुकरणीय हैं। आ. समन्तभद्र के पुरुषार्थ और साहस का अनुककरण करते हुए ही उन्होंने अपना जीवन व्यतीत किया और साहित्य साधना में अनवरत लीन रहे।
आजकल तो शीघ्रातिशीघ्र प्रतिफल की प्रत्याशा में साहस का स्थान चापलूसी ने और पुरुषार्थ का स्थान तिकड़म ने लिया है। फलतः नाना उपाधियों और पुरस्कारों की प्राप्ति की होड़ में पुरुषार्थ जन्य प्रतिफल का प्रायः अभाव देखा जाता है परिणामस्वरुप उनकी साहित्य साधना का प्रभाव अत्यल्प होता है, जब कि मुख्तार सा. के सम्पर्क में आए व्यक्तियों पर उनकी कर्मठता, साहस और पुरुषार्थमय साहित्य साधना का निरन्तर प्रभाव परिलक्षित हुआ था । अतीत की गौरवशाली परम्परा के सशक्त हस्ताक्षरों में से पूज्य श्रीगणेशप्रसाद जी वर्णी, पं. नाथूराम जी प्रेमी, सूरजभानु जी वकील, ब्र. पं. चन्दाबाई जी, श्री बाबू राजकृष्ण जैन दिल्ली आदि प्रमुख व्यक्तित्व हैं जिन पर मुख्तार सा. के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का स्थायी प्रभाव था। वर्तमान पीढ़ी भी उनकी साहित्य साधना से अभिभूत है अन्तर है तो बस यही कि पुरानी पीढ़ी अनुकरण और अनुसरण का प्रयास करती थी, जब कि वर्तमान पीढ़ी प्रशंसात्मक गुण स्तुति कर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेती है।
साहस और पुरुषार्थ के प्रतीक मुख्तार सा. ने पहले सरसावा में और बाद में दिल्ली में वीरसेवा मन्दिर की स्थापना की और उसके सोद्देश्य सफल संचालन में आजीवन जुटे रहे तथा परम्परया पं. पद्मचन्द शास्त्री ने उनका अनुकरण करते हुए जिस साहस और पुरुषार्थ का परिचय दिया है वैसा आगे